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निरयावलिका]
(३४०)
[वर्ग- पंचम
निसढे, मायनी, वह, वहे, पमता, जुत्ती, दसरहे, दढरहे य ।
महाधणू, सत्तधणू, दसधणू, नामे सयधणु, य। १. निषध, २. मायनी, ३. वह, ४. वहा, ५. पमता, ६. ज्योति, ७. दशरथ, ८. दृढ रथ, ६. महाधन्वा, १०. सप्तधन्वा, ११. दशधन्वा और १२. शतधन्वा ये बारह नाम हैं। १ ।।
मूलार्थ-भगवन् ! यदि भगवान महावीर ने चतुर्थ उपांग पुष्पचूला का यह अर्थ प्रतिपादित किया है, तो भगवन् ! इस पांचवें वर्ग वन्हिदशा नामक उपांग का मोक्ष को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ अतिपादित किया है ?
वत्स जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने इस पांचवें वृष्णिदशा नामक उपांग के बारह अध्ययन कहे हैं जैसे कि -
१. निषध, २. मायनी, ३, वह, ४. वहा, ५. पमता, ६. ज्योति, ७ दशरथ, ८. दृढ़रथ, ६. महाधन्वा; १०. सप्त धन्वा, ११. दशधन्वा और १२. शत धन्वा ये बारह नाम हैं ।।१॥
टोका-इस पांचवें वर्ग में बारह साधकों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। उक्त सूत्र के भाव __- सर्वथा स्पष्ट हैं।
मूल-जइणं भंते ! समणेणं जाव दुवालस्स अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! उवक्खेवओ । एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नाम नयरी होत्था, दुवालसजोयणायामा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा । तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीमाए, एत्थ णं रेवए नाम पवए होत्था, तुंगे गगणतलमणुविहंतसिहरे नाणाविहरुक्खगच्छगुल्मलतावल्ली. परिगताभिरामे हंस-मिय-मयूर-कौंच-सारस-चक्कवाग-मयणसालाकोइल-कुलोववेए अणेग-तडकडगवियरओज्झरपवायपुब्भारसिहर पउरे । अच्छरगणदेवसंगचारणविज्जाहरमिहुणसंनिविन्ने निच्चच्छणए दसा.