SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वृष्णिदशा : पंचम वर्ग मूल--जइणं भंते ! उक्खेवओ० उवंगाणं च उत्थस्स फुप्फचूलाणं अयमठे पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! वग्गस्स उवंगाणं वलिदसाणं भगवया जाव संपत्तेणं के अट्ठे पण्णत्ते ? एवं खलु जंबू । समणेणं भगवया महावीरेणं जाव दुवालस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा"निसढे, मायनि, वह, वहे, पगता, जत्ती, दसरहे, दढरहे । य, महाधणू, सत्तधण, दसधण, नामे सबधण, य॥१॥ - छाया–यदि खल भवन्त ! उत्क्षेपकः, उपाङ्गानां चतुर्थस्य पुष्पचूलानामयमा प्रज्ञप्तः, पञ्चमस्य खलु भदन्त ! वर्गस्य उपाङ्गानां वृष्णिदशानां श्रमणेन भगवता यावत्संप्राप्तेन कोऽर्थः प्रज्ञप्तः ? एवं खलु जम्बू ! श्रमणेन भगवता महावीरेण यावद् द्वादशाध्ययनानि प्रज्ञप्तानि, तद् यथा १, निषधः, २. मायनी, ३. वह, ४. वहे, ५. पगता, ६. ज्योतिः, ७. दशरथः, ८. दृढरथरच, ६..महाधन्वा, १०. सप्तधन्वा, ११. दशधन्वा नाम १२. शतधन्वा च ॥ १॥ पदार्थान्वयः-(श्री जम्बू स्वामी जी पूछते हैं)-जह गं भन्ते!-भगवन् ! यदि, उक्लेवमो०भगवान महावीर ने, उवंगाणं चउत्थस्स पप्फचला-चतुर्थ उपांग पूष्पचला का, अयमटठे पणते यह अर्थ प्रतिपादित किया है, पंचमस्स गंभंते वग्गस्स-तो भगवन ! इस पांचवें वर्ग, उवंगाणं वहिसाणं-वदिशा नामक उपांग का, भगवया जाव संपत्तेणं-मोक्ष को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने, के अटठेपण्णते-क्या अर्थ प्रतिपादित किया है। एवं खल जम्बू ! वत्स जम्बू !, समणेणं भगवया महावीरेणं-श्रमण भगवान महावीत्र ने, जाव दुवालस अज्जयणा पण्णता-इस पांचवें वृष्णिदशा नामक उपांग के बारह अध्ययन कहे हैं, तं जहा-जैसे कि वर्ग-पचम) (३३६) [निरयावलिका
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy