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निरयावलिका]
(३३२)
[वर्ग-चतुर्थ
लगी, एवं सीसं धोवइ-इसी प्रकार अपना सिर धोने लगी, मुहं धोवई–मुख को धोने लगो, थणगंतराइं धोवई-अपने स्तनों के मध्य-भाग को धोने लगी, कक्खंतराइ धोवई-अपनी कांखें ध ने लगी, गुज्झतराई धोवई-गुप्तांगों के आस-पास के भागों को (बार-बार) धोने लगी-अर्थात् साधुवत्ति के विपरीत शारीरिक विभूषा में प्रवृत्त हो गई। जत्थ जत्थ वि ठाणं वा सिज्ज वा निसीहियं वा चेइए-वह जहां कहीं भी बैठने के लिये, सोने के लिये, स्वाध्याय के लिये कोई स्थान निश्चित करती, तत्थ तस्थ वि य णं पुवामेव पागएणं अभक्खेइ-उस उस स्था पर वह पहले ही पानी छिड़क लेती, तओ पच्छा-तत्पश्चात्, ठाण वा सिज्ज व निसाहियं व चेइए-उस बैठने के स्थान का, शयन करने के स्थान का, स्वध्याय-स्थान का प्रयोग करती थी।
तएणं-तत्पश्चात् (अर्थात् उसके ऐसे आचरण को देखते हुए), पुप्फचूलाओ अज्जाओ. ( उसकी गुरुणी ) पुष्पचूला आर्या ने, भूयं अज्जं एवं वयासी-भूता आर्या को (प्रतिबोधित करते हुए) इस प्रकार कहा, अम्हे गं देवाणुप्पिए-हे देवानुप्रिये ! हम निश्चित ही, समणीओ-श्रमणी (साध्वी हैं), निग्गन्थीओ-निर्ग्रन्थी हैं, इरियासमियाओ-ईर्या समिति आदि पांचों समितियों का पालन करनेवाली हैं, जाव गुत्तबंभयारिणीओ-हम आन्तरिक विकारों को नियन्त्रित कर ब्रह्मचर्य व्रत धारण करनेवाली हैं, नो खलु कप्पइ अम्हं-इसलिये यह हमारे लिये सर्वथा त्याज्य है (कि हम), सरोरवाओसियाणं होत्तए-शारीरिक विभूषा-प्रिय बनें, तुमं च णं देवाणु प्पिए-हे देवानुप्रिये ! तुम तो, सरीरवाओसिया-शरीर-बकुशा (शारीरिक-विभूषा-प्रिय), (बनती जा रही हो), अभिक्खणं-अभिक्खणं-क्योंकि तुम बार-बार, हत्थे धोवसि जाव निसोहियं चेयसि-अपने हाथों पैरों और सिर आदि अगों को धोती रहती हो, सोने बैठने एवं स्वाध्याय करने के स्थान पर पानी छिड़कती हो, तंणं तमं देवाणप्पिए-इस प्रकार हे देवानुप्रिये, एयस्स ठाणस्स आलोएहि त्ति-आलोचना करो, किन्तु उसने अपनी गुरुणी पुष्पचूला की बात अनसुनी कर उसकी उपेक्षा कर दी, सेसं जहा सुभद्दाए जाव पाडियक्कं उवस्सयं उवसंपज्जित्ता णं बिहरइ(अपितु वह सुभद्रा आर्या के समान पृथक् उपाश्रय में अकेली ही चली गई और स्वतन्त्रता-पूर्वक साध्वाचार के विरुद्ध आचरण करती हुई विचरने लगी।
तएणं सा भूया अज्जा-तदनन्तर वह आर्या भूता, अणोहट्टिया अणिवारिया-उसी पापा. चरण पर स्थिर रह कर बेरोक टोक, स्वच्छदमयी-सर्वथा स्वच्छन्द होकर, अभिक्खणं-अभिक्खणं -बारम्बार, हत्थे धोवइ जाव चेएइ-हाथ पैर आदि अंगों को धोती रही और बैठने आदि के स्थान पर जल छिड़कती रही ।।६।।
मूलार्थ-तदनंनर वह आर्या भूता कुछ वर्षों के अनंतर शरीर-बकुशा-शारीरिक साज-सज्जा की प्रवृत्ति वाली हो गई, वह बार-बार हाथ धोने लगो, पैर धोने लगी, इसी प्रकार अपना सिर धोने लगी, मुख को धोने लगी, अपने स्तनों के मध्य भाग