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निरयावलिका]
( ३२२)
[वर्ग-चतुर्थ
गौतम ! उस काल एवं उस समय में राजगृह नाम का एक नगर था, वहां गुणशील नाम का एक चैत्य (उद्यान) था, वहां पर जितशत्रु नाम के राजा का राज्य था उस राजगृह नगर में सुदर्शन नाम का एक गाथा-पति (व्यापारी वर्ग का प्रमुख) रहता था; जोकि धन-धान्य से अत्यन्त समृद्ध था, उस सुदर्शन नामक गाथापति की पत्नी का नाम प्रिया था, उस गाथा-पति की पत्नो प्रिया का अनो हो कोख से अत्यन्त एक भूता नाम की पुत्री थी, जो कि बड़ी उमर को हो गई थी और वृद्धा स्त्रियों जैसी प्रतीत होती थी, जीर्ण शरीर वाली, जीर्ण महिला सी प्रतीत होती थी, उसके स्तन (जीर्णता के कारण) लटक चुके थे किन्तु पुरुष-अस्पृष्ट होने के कारण पवित्र थे । वह अभी तक वर प्राप्ति से वञ्चित थी (अर्थात् कुवारी ही थी ।
(जम्बू) उसी काल और उसी समय में पुरुषों में श्रेष्ठ अरिहन्त प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी; जो नए (चमकदार) वर्णवाले थे वहां पहले जैसा ही उनका समवसरण लगा, उनके दर्शन कर प्रवचन सुनने के लिये श्रद्धालु नागरिकों के समूह अपने-अपने घरों से निकल पड़े।
तदनन्तर वह अत्यधिक वय वाली भूता नामकी लड़की, उनके आगमन को सूचना प्राप्त होते ही अत्यन्त प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर जहां पर उनके माता-पिता थे वहीं पर आ जाती है (और) वहां आकर वह माता-पिता से इस प्रकार कहने लगो, हे माता जी, पिता जी ! मनुष्यों में श्रेष्ठ अरिहन्त प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी, ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए देवताओं से घिरे हुए (जिनके चारों ओर देव सर्वदा रहते हैं विहार करते हुए हमारे नगर में पधारे हैं इसलिये हे मां ! मैं यह चाहती हूं कि आपसे आज्ञा प्राप्त करके नौ हाथ की अवगाहना के कारण पुरुषों में श्रेष्ठ अरिहन्त प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी की चरण-वन्दना के लिये मैं भी जाऊ। हे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हारी इच्छा हो वैसे करो शुभ काम में देरी उचित नहीं होती ।।२।।
टीका-वह संग्रहणी गाथा अब अनुपलब्ध है ॥ २ ॥