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वर्ग-चतुर्थ ].
( ३२१)
[निरयावलिका
एक नगर था, गण-सिलए चेडये-वहां गणशील नाम का एक (उद्यान) था, जियसत्त रायावहां पर जित शत्र नाम के राजा का राज्य था, तत्थ णं रायगिहे नयरे-उस राजगह नगर सदसणे नाम गाहावई परिवसइ-सुदर्शन नाम का एक गाथापति (व्यापारी वर्ग का प्रमुख) रहता था, अड्डे -जो कि धन-धान्यादि से अत्यन्त समृद्ध था। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया पियाए -उस सदर्शन नामक गाथापति की पत्नी का नाम प्रिया था, गाहावइणोए अत्तया भूया नाम दारिया-उन गाथा-पति की पत्नी प्रिया की अपनी ही कोख से उत्पन्न एक भूता नाम की, दारिया होत्था-पुत्री थी, वुड्डा वुड्डा कुमारी--जो कि बड़ी उमर की हो गई थी और वृद्धा स्त्रियों जैसी प्रतीत होती थी, जण्णा जण्णकुमारी-जीर्ण शरीर की होने के कारण, जीर्ण महिला सी प्रतीत होती थी, पडियपुयत्थणी-उसके स्तन (जीर्णता के कारण) लटक चुके थे किन्तु पुरुष-अस्पृष्ट होने के कारण पवित्र थे, .वरण - परिवज्जिया यावि होत्था-वह अभी तक वर-प्राप्ति से वञ्चित ही थी (अर्थात् कुंवारी ही थी)।
तेणं कालेणं तेणं समएणं-(जम्बू) उसी काल और उसी समय में, पासे अरहा पुरिसादाणीएपुरुषों में श्रेष्ठ अरिहन्त प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी, जाव नयरवणिए-जो नए (चमकदार) बर्ण वाले थे, सो चेव-वहां पहले जैसा ही, समोसरगं-उनका समवसरण लगा, परिसा निग्गयाउनके दर्शन कर प्रवचन सनने के लिये श्रद्धालु नागरिकों के समूह अपने-अपने घरों से निकल पड़े।
. तएणं सा भूया दारिया-तदनन्तर वह भूता नाम की अत्यधिकवय वाली लड़की, इमीसे कहाए लदा समाणी-उनके आगमन की सचना प्राप्त होते ही, हट तटठाअत्यन्त प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर, जेणेव अम्मापियरो-जहां पर उसके माता-पिता थे, तेणेवउवागच्छह-वहीं पर आ जाती है, (और), उवागच्छित्ता-वहां आकर, एवं वयासी-वह मातापिता ने इस प्रकार कहने लगी, एवं खल अम्मताओ-हे माता जी, पिता जी, पासे अरहा परिसादाणीए-मनुष्यों में श्रेष्ठ अरिहन्त प्रभु श्री पार्श्वनाथ जी, पुवाणुवि चरमाणे-ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए, जाव देवगण परिवडे-देवताओं से घिरे हुए (जिनके चारों ओर देव सर्वदा रहते हैं), विहरइ-विहार करते हुए हमारे नगर में पधारे हैं, तं इच्छामि णं अम्मयाओइसलिये हे मां! मैं यह चाहती हूं कि, तब्भेहि अब्भणुण्णाया समाणी-आप से आज्ञा प्राप्त करके, पासम्म अपरओ परिसादाणीयस्स - नौ हाथ की अवगाहना के कारण परुषों में श्रेष्ठ अरिहन्त प्रभ श्री पार्श्वनाथ जी के, पाय वंदिया गमित्तए-चरण-वन्दन के लिये जाऊं, अहासहं देवाणप्पियाहे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हारी इच्छा हो वैसे करो, मा पडिबंध-शुभ काम में देरी उचित नहीं होती ॥२॥
मूलार्थ – (गौतम स्वामी जी ने पूछा) भगवन् ! यह श्रीदेवी पूर्व जन्म में कौन थी? तो गौतम स्वामी के प्रश्न का समाधान करते हुए भगवान महावीर ने कहा-) हे