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प्राकृत, गुजराती हिन्दी एवं पंजाबी भाषाओं के पूर्ण ज्ञाता हैं । मुझे स्थानांग सूत्र पर आपके द्वारा लिखी गई शोधपूर्ण प्रस्तावना पढ़ने का अवसर मिला जिसमें आपकी विद्वत्ता स्पष्ट झलकती है। आपने अनेकों ग्रन्थों की स्वतन्त्र रचना भी की है। आपने भक्तामर स्तोत्र व कल्याण-मन्दिर स्तोत्र के पद्यानुवाद भी किये हैं जिनके कैसट भी बन चुके हैं।
आपका अधिकांश आगम ग्रंथों के सम्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है जिसमें निरयावलिका उपांग सूत्र भी एक है । वर्तमान में आपका निवास लुधियाना में है। लगभग २५ वर्षों से आपके सम्पादकत्व में "आत्यरश्मि" शोधपत्रिका का निरन्तर प्रकाशन हो रहा है। ऐसे सेवानिष्ठ, दृढ़ आस्थावान बहुज्ञ भाषाविद् विद्वान् पण्डितवर श्री तिलकधर जी शास्त्री का मैं बहुत आभारी हूं और सम्पादन में प्राप्त सहयोग के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद करता हूं तथा भविष्य में भी ऐसे ही सहयोग की अपेक्षा भी करता हूं। धर्मभ्राता श्री पुरुषोत्तम जैन व श्री रवीन्द्र जैन मालेरकोटला
इसके बाद आते हैं हमारे अनुजद्वय-भ्राता श्री पुरुषोत्तम जी जैन एवं श्री रवीन्द्र जी जैन । मध्यम जैन परिवारों में जन्मे, एक साथ पढ़े लिखे और जीवन में आगे बढ़े, ये दोनों भ्राता इन दिनों मालेरकोदला में निवास करते हुए जैन धर्म-दर्शन की महती सेवा कर रहे हैं । आप दोनों देवगुरु व धर्म के प्रति सहज समर्पित हैं।
समाज आपके गुणों एवं कार्यों से भलिभांति परिचित है। आप दोनों ने देश-विदेशों में विशेष ख्याति अजित की है। सचमुच ही साध्वी-रत्ना, उपप्रवतिनी गुरुणी श्री स्वर्ण कान्ता जी महाराज की मूर्तिमान प्रेरणा हो हैं ये पंजाबी विद्वान बन्धुद्वय । मैंने तो जब भी पाया आप दोनों को एक साथ पाया है-ये द्विवदन एक प्राण हैं। श्री रवीन्द्र जैन उच्च राजकीय सेवारत हैं । अपने से बड़ों एवं पूज्यजनों, विद्वानों के प्रति आप दोनों का आदरभाव ही आपकी विनयशीलता और सदाचरण को दर्शाता है।
दोनों बन्धु भारतीय प्राचीन संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व विज्ञान के विशेषज्ञ हैं। जैन कला, साहित्य एवं इतिहास पर आपने बहुत कार्य किया है। पंजाबी, अंग्रेजी एवं देवनागरी पर आप दोनों का असाधारण अधिकार है। आप दोनों प्राचीन लिपियों के तो सुज्ञाता हैं ही, साश ही संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और गुजराती भाषाओं के ज्ञाता विद्वान् भी हैं। अब तक आप दोनों के द्वारा लगभग ४० ग्रन्थों की रचना की जा चुकी है जिनमें कुछ एक स्वतन्त्र रूप से लिखी हुई रचनायें भी मिलती हैं जो अधिकांश सम्मिलित रूप से सम्पादित ग्रंथ विशेष हैं। आप दोनों ने जो एक बड़ा उपयोगी कार्य अपने हाथ में लिया है वह है जैन साहित्य को पंजाबी में रूपान्तरित कर प्रकाशित करना और उनका पंजाबी भाषा में अनुवाद कर वितरित करना। अनेकों छात्र-छात्राएं और विद्वान् इन रचनाओं से अधिक से अधिक लाभ उठा रहे हैं।
[ अट्ठाईस]