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________________ अनुवाद सहित साथ ही अनेक मौलिक रचनाएं भी प्रकाशित कर देश-विदेश के विश्वविद्यालयीय पुस्तकालयों तथा विद्वानों तक पहुंचाई जा चुकी हैं। श्री गुरुणी जी महाराज को सद्प्रेरणा का दूसरा दृष्टांत है-पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला (पंजाब) में संस्थापित भगवान् महावीर जैन चेयर । इस चेयर के संस्थापन में श्री गुरुणी जी महाराज का समस्त श्रमणी-जीवन समर्पित है, जो सदैव स्मरणीय रहेगा। आपने जैन चेयर के पुस्तकालय के लिये स्वकीय हस्तलिखित ग्रन्थों का अक्षय विपुल कोष शोधार्थ अर्पित कर दिया है । आप स्वयं विदुषी हैं, विद्वानों का सम्मान करती हैं। विद्वानों के सम्मानार्थ ही आपकी प्रेरणा से पंजाब-हरियाणा के जैन समाज ने आपको दादा गुरुणो महाश्रमणो प्रवर्तिनी साध्वी श्री पार्वती जी महाराज की स्मृति में इण्टरनेशनल पार्वती जैन एवार्ड और स्व० श्रावक श्री नाथूराम जो जैन को स्मृति में इण्टर नेशनल महावीर जैन वेजिटेरियन अवार्ड को स्थापना को है। __ ऐसी हैं हमारी पंजाबी में जैन साहित्य की प्रेरिका उदारमना गुरुणी साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज। गुरुणी महाराज की गुणगरिमा पर जितना अधिक लिखा जाय, वह सब सूर्य को दीपक दिखलाने जैसा है । मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूं कि आप सदृश गुरुणी जी के मझे दर्शन एवं प्रवचन सुनने का अवसर मिला तथा आशीष प्राप्त हुए। मैं अपनी ओर से तथा जैन समाज की ओर से आप महानुभवो गुरुणी जी महाराज की दीर्घायु की हार्दिक मंगलकामना करता हूं। साध्वी श्री स्मृति जी एम. ए. निरयावलिका सूत्र के सम्पादक मण्डल में चार महान् व्यक्तियों के नाम आते हैं। इनमें प्रथम हैं गुरुणी जी महाराज की द्वितीय शिष्या साध्वी श्री सुधा जी महाराज की शिष्या अर्थात श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज की प्रशिष्या नवदीक्षित साध्वी श्री स्मृति जी महाराज। साध्वी श्री स्मृति जो महाराज स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ की विशेष रूप से उत्तरभारतीय श्रमणी संघ की उदीयमान विदुषी साध्वो-रत्न हैं। साध्वी जी बचपन से ही धार्मिक विचारवाली, विनयशील एवं प्रत्युत्पन्नमति रही हैं जिसका परिणाम है कि आप श्री ने अपनी समस्त उच्चपरीक्षायें प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की हैं । सन् १९६० में पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से एम०ए० (हिन्दी)तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से सन् १९९३ में एम० ए० (संस्कृत) में सर्वाधिक अंक लेकर स्वर्णपदक प्राप्त किए हैं । सम्प्रति आपकी अभिरुचि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से जनदर्शन में शोधकार्य करने की है। साध्वी श्री स्मृति जी का निरयावलिका श्रुतस्कन्ध के सम्पादन में सहज योगदान है। इसके लिए मैं इन नवोदित विदुषी साध्वो श्री का हार्दिक सम्मान करता हुआ उनके प्रति मैं अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। श्री तिलकधर जो शास्त्री अग्रज विद्वद्वर पण्डित श्री तिलकधर जी शास्त्री को उक्त महान कार्य में स्मरण किए बिना मैं कैसे रह सकता हूं। शास्त्रो जो वेद, व्याकरण एवं साहित्य के अधिकारी विद्वान् हैं । आप पालि [सताईस )
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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