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________________ वर्ग-चतुर्थ ] (३१६) [निरयावलिका श्री देवी (पूर्व वणित) बहुपुत्रिका देवी के समान (प्रभु महावीर के पास प्राई) और, नट्टविहि उवदंसित्ता-नाट्य-विधि प्रदर्शित करके, पडिगया-वापिस देवलोक में ही लौट गई, नवरंइतना विशेष समझना चाहिये कि, (दारय) दारियाओ नस्थि-उसके साथ वैक्रिय शक्ति द्वारा उत्पन्न बालक बालिकायें नहीं थीं।।१।। मूलार्थ- भगवन् ! यदि भगवान् महावीर ने पुष्पिता नामक वर्ग में दस अध्ययनों का वर्णन किया है तो तदनन्तर उन्होंने क्या फरमाया है ? सुधर्मा स्वामी जी ने जम्बू जी के प्रश्न का समाधान करते हुए कहा वत्स जम्बू ! तदनन्तर भगवान महावीर ने पुष्पचूलिका नामक चतुर्थ वर्ग का निरूपण किया है, इस वर्ग में दस अध्ययन बतलाये हैं, जैसे कि -१. श्री, २. ह्री, ३. धी, ४. कीर्ति, ५. बुद्धि, ६. लक्ष्मी, ७. इलादेवी, ८. सुरादेवी. ९. रसदेवी और १० गन्धदेवी । जम्बू ! भगवान महावीर ने उपर्युक्त दस अध्ययनों का निरूपण किया है। ___(जम्बू जी ने पुनः जिज्ञासा प्रकट की-) भगवन ! मोक्ष-धाम को प्राप्त होने वाले भगवान् महावीर ने पुष्पचूलिका के चतुर्थ वर्ग में दस अध्ययनों का वर्णन किया है तो इस वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या भाव फरमाया है ? श्री सुधर्मा स्वामी जी ने उत्तर दिया हे जम्बू ! उस काल एवं उस समय में राजगृह नाम का एक नगर था, उस नगर में गुण शिलक नामक एक चैत्य (उद्यान) था, उस नगर पर श्रेणिक नाम का राजा राज्य करता था, भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए वहां पधारे । उनके दर्शनों एवं उपदेश-श्रवण के लिये श्रद्धालु नागरिकों की टोलियां वहां पहुंचने के लिये अपने अपने घरों से निकलीं। ____ उसी काल उसी समय श्री देवी सौधर्म नामक देवलोक के श्री-अवतंसक विमान में सुधर्मा नाम की सभा में श्री नामक सिंहासन पर चार हजार सामानिक देवों के साथ तथा परिवार सहित चार हजार महत्तरिकाओं के साथ (बैठी हुई थी), वह श्री (पूर्व वणित) बहुपुत्रिका देवी के समान (प्रभु महावीर के पास आई) और नाट्यविधि प्रर्दिशत करके; वापिस देवलोक में ही लौट गई । इतना विशेष समझना चाहिये कि उसके साथ वैक्रिय शक्ति द्वारा उत्पन्न बालक बालिकायें नहीं थीं ॥१॥ . टीका-समस्त विषय अत्यन्त स्पष्ट है ॥१॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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