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________________ निरयावलिका] (३१८) [वर्ग-चतर्थ समये राजगृहं माम नगरं, गुणशिलं चैत्यं, श्रेणिको राजा, स्वामी समवसृतः, परिषद् निर्गता। तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रीदेवी सौधर्म कल्पे श्यवतंसके विमाने सभायां सुधर्मायां श्रियि सिंहासने चभिः सामानिकसहस्रः चतसृभिर्महत्तरिकाभिः सपरिवाराभिः यथा बहुपुत्रिका यावद् नाट्यविधि-मुपदर्य प्रतिगता। नवरं [ दारक ] दारिका न सन्ति ।।१।। पदार्थान्वयः-जइ णं भंते !-भगवन् यदि, समणेणं भगवया-भगवान् महावीर ने, उक्खेवओ जाव०-पुष्पिता नामक वा में दस अध्ययनों का वर्णन किया है तो तदनन्तर उन्होंने क्या फरमाया है ? (सुधर्मा स्वामी जी ने जम्बू स्वामी जी के प्रश्न का समाधान करते हुए कहा)-"वत्स जम्बू ! तदनन्तर भगवान् महावीर ने पुष्पचूलिका नामक चतुर्थ वर्ग का निरूपण किया है। इस वर्ग में, दस अज्झयणा पण्णत्ता-दस अध्ययन बतलाये हैं; तं जहा–वे जैसे सिरि-हिरि-धिइ-कीत्तीमओ, बुद्धी लच्छो य होइ बोधव्वा । इलादेवी सुरादेवी रसदेवी गंध देवी य ॥१॥ १ श्री, २ ह्री, ३ धी, ४ कीर्ति, ५ बुद्धि, ६ लक्ष्मी, ७ इलादेवी, ८ सुरादेवी, ६ रस देवी और १० गन्ध देवी__ (जम्बू ! भगवान् महावीर ने उपर्युक्त दस अध्ययनों का निरूपण किया है।) जइणं भन्ते !-भगवन् यदि, समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं-मोक्ष धाम को प्राप्त होने वाले भगवान् महावीर ने, उवंगाणं-पुष्पचूलिका के चतुर्थ वर्ग में दस अध्ययनों का वर्णन किया है, तो पढमस्स गं भंते उक्खेवओ-तो इस वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या भाव फरमाया है ? एलं खलु जम्बू-श्री सुधर्मा स्वामी जी ने उत्तर दिया हे जम्बू !, तेणं कालेलं तेणं समएणं-उस काल एवं उस समय में, रायगिहे नयरे–राजगृह नाम का एक नगर था, गुणसिलए चेइए-उस नगर में गुण शिलक नामक एक चैत्य (उद्यान) था, सेणिए राया-उस नगर पर श्रेणिक नाम का राजा राज्य करता था, सामी समोसढे-भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वहाँ पधारे, परिसा निग्गया-उनके दर्शनों एवं उपदेश-श्रवण के लिये, श्रद्धालु नागरिकों की टोलियां वहां पहुंचने के लिये अपने-अपने घरों से निकलीं। तेणं काले तेणं समएणं-उसी काल एवं उसी समय में, सिरी देवी-श्री देवी, सोहम्मेकप्पे-सौधर्म नामक देवलोक के, सिरि - वडिसए विमाणे-श्री - अवतंसक विमान में, सभाए सुहम्माए-सुधर्मा नाम की सभा में, सिरिसि सोहासणंसि-श्री नामक सिंहासन पर, चाँह सामाणिय साहस्सेहि-चार हजार सामानिक देवों के साथ, चउहि महत्तरियाहिं सपरिवाराहितथा परिवार सहित चार हजार महत्तरिकाओं के साथ (बैठी हुई थी), जहा बहुपुत्तिया-जैसे वह
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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