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________________ वर्ग-तृतीय] (३०७) [निरयावलिका जो जाति-सम्पन्न थे (अच्छे कुल के थे) जो जीवन की इच्छा और मृत्यु का भय दोनों से मुक्त थे, बहुश्रुत थे और विशाल मुनि-समूह के साथ भगवान् महावीर की आज्ञा के अनुरूप विचरण कर रहे थे। वे उसी नगरी में पधारे । जन-समुदाय रूप नागरिकों की टोलियां घरों से निकल कर वहां उनके दर्शनार्थ एवं उपदेश-श्रवण के पहुंचीं ॥१॥ टीका-पूरा वर्णन अत्यन्त स्पष्ट है ।।१।। मूल--तएणं से पुण्णभद्दे गाहावइ इमीसे कहाए लद्धठे समाणे हठ्ठ० जाव पण्णत्तीए गंगदत्ते तहेव निग्गच्छइ, जाव निक्खंतो जाव गत्तबंभयारी। तएणं से पुण्णभट्टे अणगारे भगवंताणं अंतिए सामाइय-मादियाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बइंहिं चउत्थछट्ठट्ठम जाव भावित्ता बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे पुण्णभद्दे विमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जंसि जाव भाषामणपज्जत्तीए । . एवं खलु गोयमा ! पुण्णभद्देणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमण्णागया। पुण्णभहस्स गं भेते ! देवस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! दोसागरोवमा ठिई पण्णत्ता । पुण्णभद्दे णं भंते ! देवे ताओ देवलोगाओ जाव कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ?गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ ? एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं निक्खेवओ० ॥२॥ ॥ पंचमं अज्झयण समत्तं ॥५॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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