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निरयावलका ]
(३०६ )
[ वर्ग-तृतीय
विशाल मुनि समूह के साथ, पुव्वाणुपुव्वि, भगवान् महावीर की आज्ञा के अनुरूप विचरते हुए, जाव समोसढा - उसी नगरी में पधारे, परिसा निग्गया - जन-समुदाय रूप नागरिकों की टोलियां घरों से निकल कर वहां उनके दर्शनार्थ एवं उपदेश श्रवण के लिये पहुंचीं ॥ १ ॥
मूलार्थ – ( जम्बू स्वामी प्रश्न करते हैं) भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने पुष्पिता के चतुर्थ अध्ययन में पूर्वोक्त भावों का वर्णन किया है तो पञ्चम अध्ययन में किस विषय का निरूपण किया है ?
सुधर्मा स्वामी बोले- हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नाम का एक नगर था, उस नगर में गुणशील नाम का एक चैत्य था। वहां पर श्रेणिक नाम का राजा राज्य करता था। नगर के उसी चैत्य में भगवान् महावीर स्वामी पधारे; भगवान् के दर्शनों और उपदेश श्रवण के लिये, जन-समूह नगर से बाहर निकल कर उसी गुणशील चैत्य में पहुंचा ।
( जम्बू !) उस काल और उस समय में सौधर्म कल्प लोक के पूर्णभद्र नामक विमान की सुधर्मा नाम से प्रसिद्ध सभा में पूर्णभद्र नामक सिंहासन पर पूर्णभद्र नाम का देव चार हजार सामानिक ( सेवा में उपस्थित रहने वाले) देवों के साथ बैठा हुआ था, वह देव सूर्याभ देव के समान भगवान् के समक्ष यावत् बत्तीस प्रकार की नाट्यविधियां प्रदर्शित करके जिस दिशा से आकर वहां प्रकट हुआ था; उसी दिशा (मार्ग) में लौट गया ।
तब गौतम स्वामी जी के हृदय में पूर्ण भद्र के पूर्व जन्म के सम्बन्ध मैं जानने की इच्छा उत्पन्न हुई। उनका समाधान करते हुए भगवान् ने कहा - हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में "मणिपदिका” नाम की एक नगरी थी जो विशाल अट्टालिकाओं वाले भवनों से युक्त थी, शत्रुओं के आतंक से मुक्त और धन-धान्यादि से सम्पन्न थी । वहां के राजा का नाम चन्द्र था और उस नगर में "ताराकीर्ण" नाम का एक उद्यान था । उस मणिपदिका नाम की नगरी में पूर्णभद्र नाम का एकगाथापति रहता था जो अत्यन्त समृद्ध था ।
उसी काल में उस समय स्थविर पद- विभूषित एक ऐसे मुनिराज वहां पधारे