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वर्ग-तृतीय]
(३०५)
[निरयावलिका
- पदार्थान्वयः-जइणं भन्ते !--भगवन् यदि, समणेणं भगवया-श्रमण भगवान महावीर ने, उक्खेवो-पुष्पिता के चतुर्थ अध्ययन में पूर्वोक्त भावों का वर्णन किया है तो पञ्चम अध्ययन में किस विषय का निरूपण किया है ?
एवं खल जम्बू ! (सुधर्मा स्वामी बोले)-हे जम्बू !, तेणं कालेणं तेणं समएणं-उस काल और उस समय में, रायगिहे नाम नयरे-राजगृह का नाम का एक नगर था, गुणसिलए चेइएउस नगर में गुणशील नाम का एक चैत्य (उद्यान) था, सेणिए राया-वहां पर श्रेणिक नाम का
राजा था, सामी समोसरिए-श्रमण भगवान महावीर स्वामी नगर के उस चैत्य में पधारे, परिसा निग्गया- श्रमण भगवान के दर्शनों और उपदेश श्रवण के लिये जन-समूह नगर से बाहर निकलकर वहां गुणशील चेत्य में पहुंचा।
तेणं कालेणं तेणं समएणं-(जम्बू) उस काल और उस समय में, पण्णभद्दे देवे- पूर्णभद्र नाम के देवता, सुहम्मे कप्पे-सौ धर्म कल्प के, पुण्णभद्दे विमाणे-पूर्णभद्र नामक विमान की, सुहम्माए सभाए-सुधर्मा नाम की सभा में, पुष्णभदंसि सीहासणंसि-पूर्णभद्र नामक सिंहासन पर, चहिं समाणिय साहस्सिहि-चार हजार सामानिक देवों के साथ बैठे हुए थे। जहा सूरियाभो–सूर्याभ देव के समान, .जांव बत्तीस विहं नट्टविहि-भगवान के समक्ष यावत् बत्तीस प्रकार की नाट्य-विधियां, उवदं सत्ता-प्रदर्शित करके, जामेव दिसि पाउब्भए-जिस दिशा से आकर वह प्रकट हुआ था, तामेव दिसि पडिगए-वह उसी दिशा (मार्ग) से लौट गया, कूडापारशाला० पृथ्वभवपच्छा-(जम्बू !) अब गौतम स्वामी जी ने पूर्णभद्र देव की ऋद्धि के विषय में प्रश्न किया कि वह नाट्य-विधि में प्रदर्शित वैभव कहां चला गया ? तब भगवान् महावीर ने पहले की तरह ही कूटागारशाला के उदाहरण द्वारा गौतम स्वामी जी को प्रतिबोधित किया।
(तब गौतम स्वामी जी के हृदय में पूर्णभद्र देव के पूर्व जन्म के सम्बन्ध में जानने की इच्छा उत्पन्न हई, उनका समाधान करते हए भगवान ने कहा), एवं गोयमा! हे गौतम!
लेण तेणं समएण-उस काल और उस समय में, इहेव जम्द दीवे-इसी जम्ब द्वीप के, भारदेवास-भरत क्षेत्र में, मणिवडया नामं नयरी होत्था-मणिपदिका नाम की एक नगरी थी, रिद्ध०-जो बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं वाले भवनों से युक्त शत्रु-भय से रहित एवं धन-धान्यादि से सम्पन्न थी, चंदो राया-वहां के राजा का नाम चन्द्र था, ताराइण्णो चेइए-उसी नगरी में ताराकीर्ण नाम का एक चैत्य (उद्यान) था, तत्थ णं मणिवइयाए नयरीए-उस मणिपदिका नाम की नगरी में, पुण्णभद्दे नाम गाहावई-पूर्ण भद्र नाम का एक गाथापति, परिवसइ-रहता था, अढे-जी अत्यन्त समृद्ध था।
तेणं कालेणं तेणं समएणं-उसी काल में उस समय, थेरा भगवंतो-स्थविरपद-विभूषित एक मुनिराज पधारे जो, जातिसंपण्णा-जाति-सम्पन्न थे, जाव जीवियास-मरण-भयविप्पमक्कावे जीवन की इच्छा और मरने का भय दोनों से ही मुक्त थे, बहुस्सया-बहुश्रुत, बहुपरिवारा