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________________ निरयावलिका] (३०२) [वर्ग-तृतीय सौधर्म देवलोक में कुछ देवों की दो सागरोपम की स्थिति कही गई है। वहां पर सोम नामक देव की भी दो सागरोपम की स्थिति कही गई है ।। २५ ॥ . टीका- राष्ट्रकूट अपनी पत्नी के साध्वी बनने से पूर्व अपने जाति-बन्धुओं एवं मित्रों आदि का अनेक विध भोजन सामग्री द्वारा आदर-सत्कार करेगा। जैन संस्कृति साध बनने वाले व्यक्ति से द्वारा सभी मोह-सम्बन्ध तोड़कर साक्षी रूप में समस्त जातीय बन्धुओं एवं मित्रों को आमन्त्रित करने का विधान करती। साध्वी के लिये प्रतिक्रमण आदि के अतिरिक्त शास्त्र-स्वाध्याय को भी आवश्यक एवं अनिवार्य बताया गया है। अन्त में संलेखना साधु-चर्या का अनिवार्य अंग है ।। २५ ॥ मूल--से णं भंते ! सोमे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जात्र चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे जाव अंतं काहिइ। एवं खलु जंबू ! समणेणं जाव संपत्तेणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमठे पण्णत्ते ॥२६॥ छाया-सः खलु भवन्त | सोमो देवः तस्मात् देवकोकाद् आयुक्षयेण यावत् चयं च्युत्वा क्व गमिष्यति ? क्व उत्पत्स्यते ? गौतम ! महाविदेहे वर्षे यावद् अन्तं करिष्यति । एवं खल जम्बू । धमणेन यावत् सम्प्राप्तेन चतुर्थस्याध्ययनस्य अयमर्थः प्रज्ञप्तः ।।२६।। ॥ पुष्पितायां चतुर्थमध्ययनं समाप्तम् ॥ ४ ।। पदार्थान्वयः-(गौतम स्वामी जी पूछते हैं) से गं भन्ते ! भगवन् ! सोमेदेवे-वह सोम नामक देव, ताओ देव लोगाओ-उस सौधर्म देवलोक से, आउक्खएणं जाव-आयु-क्षय, भवक्षय और स्थिति क्षय हो जाने पर, चयं चइत्ता-वहां से च्यव कर, कहि गच्छिहिइ-कहां जायेगा, कहिं उववज्जिहिइ-कहां उत्पन्न होगा। (भगवान महावीर ने गौतम स्वामी जी को बतलाया)-गोयमा हे गौतम ! महाविदेहे . वासे–महाविदेह क्षेत्र में, जाव अतं काहिइ-सब दुःखों का अन्त करेगा, एवं खलु जम्बू !इस प्रकार हे जम्बू !, समणेणं जाव संपत्तेणं-मोक्षधाम में पहुंचने वाले श्रमण भगवान् महावीर
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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