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________________ वर्ग-तृतीय] (३०१) [निरयावलिशा पान, खाद्य स्वाद्य चारों प्रकार की भोजन-सामग्री बनवाकर जातीय बन्धुओं एवं मित्रों आदि को खिलाकर सन्तुष्ट करेगा, पुठवभवे सुभद्दा जाव अज्जा जाता-पूर्व जन्म में जैसे सुभद्रा आर्या बनी थी वैसे ही, सा सोमा अज्जा-वह सोमा भी आर्या बनेगी। (अब उसने) सुब्बयाणं अज्जाणं अतिए-सुव्रता आर्याओं के सान्निध्य में बैठ कर, सामाइय माइयाइ-सामायिक एवं, एक्कारस अंगाई-ग्यारह अंग शास्त्रों का, अहिज्जइ-अध्ययन करेगी, अहिज्जित्ता-अध्ययन करके, बाहिं छठ्ठट्ठम दसम-दुवालस० जाव–अनेक विध छठ, अष्टम, दशम, द्वादश आदि तप साधनाओं द्वारा, भावेपाणी-अपनी आत्मा को भावित करती हुई, बहहिं वासाई-बहुत वर्षों तक, सामण्ण परियागं-श्रामण्य पर्याय का, पाउणइ-पालन करेगी, पाउणित्ता-और पालन करके, मासियाए संलेहणाए–एक मास की संलेखना द्वारा, सटिठ भत्ताई अणसम्णए छेदित्ता-साठ दिनों के भोजन का अनशन द्वारा छेदन करके, आलोइयपडिक्कता समाहिपत्ता-अपने पाप स्थानों की आलोचना और प्रतिक्रमण करके, समाधि को प्राप्त कर, कालमासे कालं किच्चा-कालमास में काल करके, सक्कस्स देविदस्स देवरणो-देवराज देवेन्द्र शक की, सामाणिय देवत्ताए–सामानिक देवता के रूप में, उववन्ना-उत्पन्न होगी, तत्थणं-वहां सौधर्म देवलोक में, अत्थेगइयाणं देवाणं-कुछ एक देवों की, दोसागरोबमाइं-दो सागरोपम की स्थिति कही गई है, तत्थणं-वहां पर, सोमस्स वि देवस्स-सोम नामक देव की भी, बोसागरोवमाइं-दो सागरोपम की, ठिई पण्णत्ता-स्थिति कही गई है ।।२५।। मूलार्थ-तदनन्तर राष्ट्रकूट विपुल अशन, पान, खाद्य-स्वाद्य - चारों प्रकार की भोजन सामग्री बनवा कर जातीय बन्धुओं एवं मित्रों आदि को खिलाकर सन्तुष्ट करेगा पूर्व जन्म में जैसे सुभद्रा आर्या (साध्वी) बनी थी वैसे ही वह सोमा भी आर्या बन जायेगी। ___अब वह सुव्रता आर्याओं के सान्निध्य में बैठकर सामायिक एवं ग्यारह अंग शास्त्रों का अध्ययन करेगी और अध्ययन करके बहुत से छ? अष्टम दशम एवं द्वादश आदि के रूप में तप-साधनाओं के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करती हुई बहुत वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन करेगी और पालन करके एक मास की संलेखना द्वारा साठ दिनों के आहार का अनशन द्वारा छेदन करके अपने पाप-स्थानों की आलोचना और प्रतिक्रमण करके समाधि को प्राप्त हो कालमास में काल करके देवराज देवेन्द्र शक्र के सोम नामक सामानिक देव के रूप में उत्पन्न होगी। वहां
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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