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निरयावलिका]
(३००)
[वर्ग-तृतीय
ही श्रद्धा-भक्ति पूर्वक उपाश्रय में साध्वी-सान्निध्य में पहुंचेगी। यह प्रत्येक श्रावक-श्राविका का कर्तव्य है कि वह गुरुजनों का आगमन सुनते ही उनके दर्शनार्थ वहां पहुंच जायें।
स्त्रियों को गृह त्याग कर साध्वी-जीवन अपनाने से पूर्व विवाहित होने पर अपने पति से आज्ञा अवश्य प्राप्त करनी चाहिये ।
पहली बार पूछने पर राष्ट्रकूट अपनी पत्नी सोमा को घर में ही रहने का परामर्श देता हैं किन्तु दूसरी बार पूछने पर उसने उसकी भावना का समर्थन करते हुए उसे प्रेरणा दी कि 'मा पडिबन्धं' शुभ कार्य में देरी मत करो। अपने किसी भी पारिवारिक जन को धर्म-मार्ग में से रोकना उचित नहीं होता प्रस्तुत सूत्र का यह संकेत मननीय है ।। २४ ।।।
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मूल-तएणं से रट्ठकूडे विउलं असणं तहेव जाव पुत्वभवे सुभद्दा जाव अज्जा जाता, इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी। तएणं सा सोमा अज्जा सम्वयाणं अज्जाणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूहिं छठ्ठट्ठम दसम दुवालस० जाव भावेमाणी बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सठ्ठि भत्ताइं अणसणाए छवित्ता आलोइयपडिक्कंता समाहि पत्ता कालमासे कालं किच्चा सक्कस्स देविदस्स देवरणो सामाणियदेवताए उववन्ना। तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं दो सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं सोमस्स वि देवस्स दोसागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥२५॥
छाया-ततः खलु स राष्ट्रकूटो विपुलमशनं तथैव यावत् पूर्वभवे सुभद्रा यावद आर्यां जाता, इर्यासमिता यावद् गुप्तब्रह्मचारिणी । ततः खलु सा सोमा आर्या सुव्रतानामार्याणामन्ति के सामायिकादीनि एकादशाङ्गानि अधोते, अधीत्य बहुभिः षष्ठाष्टमदशमद्वादश० यावद् भावयन्ती बहूनि वर्षाणि धामण्यपर्यायं पालयति, पालयित्वा मासिक्या संलेखनया षष्ठि भक्तानि अनशनेन छित्त्वा आलोचित. प्रतिक्रान्ता समाधिप्राप्ता कालमासे कालं कृत्वा शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सामानिकदेव तया उत्पद्यत । तत्र खलु अस्त्येककेषां देवानां द्विसागरोपमा स्थितिः प्रज्ञप्ता, तत्र खलु सोमस्यापि देवस्य द्विसागरोपमा स्थितिः प्रज्ञप्ता ।।२।।
पदार्थान्वयः-तएणं से रटुकडे-तदनन्तर राष्ट्रकूट ने, विउलं असणं जाव-विपुल अशन,