SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग-तृतीय ( २९६ ) [निरयावलिका अंतियाओ-- उन सुव्रता प्रार्यानों के पास से, पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता-उपाश्रय से बाहर आएगी ओर बाहर आकर, जेणेव सए गिहे-जहां उसका अपना घर होगा, जेणेद रट्ठकडेऔर जहां पर राष्ट्र कट होगा, तेणेव उवागच्छइ-वहीं पर पहुंच जाती है और, उवागच्छित्ता करतल परिगहियं-वहां पहुंचकर अपने दोनों हाथ जोड़कर, तहेव-पहले की तरह ही, आपुच्छइ-राष्ट्रकूट से पूछेगी, जाव पव्व इत्तए-कि मैं प्रवज्या ग्रहण करना चाहती हूं (तब राष्ट्रकूट ने भी यही कहा), अहासहं देवाणुप्पिए !-देवानुप्रिये जैसे तुम्हारी आत्मा को सुख हो वैसा करो, मा पडिबंध-शुभ कार्य में विलम्ब मत करो ॥२४॥ मूलार्थ – तदनन्तर सुव्रता आर्यायें पुन: किसी समय क्रमशः ग्रामानुग्राम विहार करती हुई उसी बिभेलग्राम में आयेंगी और वसति (ठहरने) की आज्ञा लेकर उपाश्रय में तप-संयम द्वारा अपनी आत्मा को भावित करती हुई ठहरेंगी। तदनन्तर ब्राह्मणी सोमा उनके आगमन की सूचना प्राप्त होते हो प्रसन्न एवं सन्तुष्ट होकर स्नान करेगी, पहले की तरह वस्त्राभूषणों से सज कर एवं अपनी दासियों से घिरी हुई, अपने घर से निकलेगी और उपाश्रय में पहुंच कर आर्याओं को वन्दना नमस्कार करेगी और वन्दना-नमस्कार करके आर्याओं के मुख से धर्म सुनकर पहले की तरह आर्याओं से निवेदन करेगी कि मैं अपने पति राष्ट्रकूट से जाकर पूछती हूं (आज्ञा लेती हूं) तत्पश्चात् लौट कर मैं आपसे दीक्षा ग्रहण करूंगी। ___आर्याय पुनः सोमा से कहेंगी जैसे तुम्हारी आत्मा को सुख हो वैसा करो। तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी (उनमें से ज्येष्ठ) साध्वी को वन्दना-नमस्कार करती हैं और वन्दना नमस्कार करके, उन सुव्रता आर्याओं के पास से (उठकर) उपाश्रय से बाहर आती है और बाहर आकर जहां उसका अपना घर होगा जहां पर उसका पति राष्ट्रकूट (बैठा) होगा वहीं पहुंच जाएगी, वहां पहुंच कर दोनों हाथ जोड़ कर पहले की तरह ही राष्ट्रकूट से वह पूछेगी कि मैं प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहती हूं। राष्ट्रकूट भी उससे यही कहेगा कि) देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हारी आत्मा को सुख हो वैसा ही करो, शुभ कार्य में विलम्ब मत करो ॥२४॥ टीका-प्रस्तुत सूत्र में सोमा आर्या के भविष्य का कथन करते हुए भगवान कहते हैं कि सोमा ब्राह्मणी के हृदय में साध्वियों के प्रति श्रद्धा जागृत होगी। वह साध्वियों का आगमन सुनते
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy