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________________ निरयावसिका] (२६८) [वर्ग-तृतीय हठतटठा व्हाया तहेव निग्गया जाव वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता धम्म सोच्चा जाव नवरं रट्ठकूडं आपुच्छामि, तएणं पव्वयामि । अहासह। तएणं सा सोमा माहणी सव्वयं अज्जं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सव्वयाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्समित्ता जेणेव सए गिहे जेणेव रट्ठकूडे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करतल परिग्गहियं० तहेव आपुच्छइ जाव पव्वइत्तए । अहासुह देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं ॥२४॥ छाया-ततः खलु ताः सुव्रता आर्या अन्यदा कदाचित् पूर्वाना यावद् विहरन्ति । ततः खलु सा सोमा ब्राह्मणी अस्याः कथाया लब्धार्था सतो हृष्टतुष्टा० स्नाता तथैव निर्गता यावद् वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा धर्म श्रुत्वा यावद् नवरं राष्ट्रकूटमापच्छामि, तवा प्रव्रजामि यथासुखम् । ततः खल सा सोमा ब्राह्मणी सुव्रतामार्या वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा सुव्रतानामन्तिकात् प्रतिनिष्क्रम्य यत्र व स्वकं गृह यौव राष्ट्रकूटस्तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य करतलपरिगृहीत. तथैव आपृच्छति यावत् प्रवजितुम् । यथासुखं देवानुप्रिये ! मा प्रतिबन्धम् ॥२४॥ पदार्थान्वयः-तएणं तओ सुव्वयामओ अज्जाओ-तदनन्तर वे सुव्रता आर्यायें, अन्नया कयाईफिर किसी समय, पुव्वाणुपुग्विं - क्रमशः ग्रामानुग्राम विहरण करते हुए, जाव विहरइ-उसी विभेल ग्राम में आयेंगी और वसति (ठहरने की आज्ञा लेकर उपाश्रय में तप-संयम से आत्मा को भावित करती हुई ठहरेंगी, तएणं सा सोमा माहणी-तदनन्तर वह ब्राह्मणी सोमा, इमीसे कहाए लद्धदा समाणी-उनके आगमन की सूचना प्राप्त करते ही, हट्टतुट्ठाण्याया-प्रसन्न एवं सन्तुष्ट होकर स्नान करेगी, तहेव निग्गया-पहले की तरह वस्त्रालंकारों से सजकर और अपनी दासियों के समूह से घिरी हुई घर से निकलेगी, जाव वंदइ नमसइ-और उपाश्रय में पहुंचकर आर्याओं को वन्दना नमस्कार करेगी, सेवा-भक्ति करेगी. वंदित्ता नमंसित्ता-वन्दना-नमस्कार करके, धम्म सोच्चा-वन्दना नमस्कार के अनन्तर उनके मुख से धर्म तत्व सुनकर, जाव नवरं-पहले की तरह आर्याओं से निवेदन करेगी कि मैं अपने पति, रटुकडं आपुच्छामि-राष्ट्रकूट से जाकर पूछती हूं (आज्ञा लेती हूं), तएणं-तत्पश्चात् लौट कर, पव्वयामि-दीक्षा ग्रहण करूंगी। आर्यायें कहेंगी-अहासुह-जैसे तुम्हारी आत्मा को सुख हो वैसा करो, तएणं सा सोमा माहणो-तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी, सुव्वयं अज्ज-(उनमें से ज्येष्ठ) साध्वी को, वंदइ नमंसह-वन्दना नमस्कार करेगी और, वंवित्ता नमंसित्ता-वन्दना नमस्कार करके, सुव्बयाणं
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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