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वर्ग-ततीय
( २६७)
[निरयावलिका
- टीका-इस सूत्र द्वारा यह ज्ञान प्राप्त हो रहा है कि धर्म-श्रवण के लिये श्रद्धा-भक्ति-पूर्वक गुरुजनों के पास जाना चाहिये ।
स्त्रियों के लिये यह भी उचित है कि वे अपने पति के परामर्श के अनुसार ऐसे चलें जैसे सोमा अपने पति के परामर्श को मान कर साध्वी न बनकर श्राविका बनती है।
श्रावक-श्राविकाओं को अपना जीवन धर्माचरण करते हुए व्यतीत करना चाहिये ।।२२।।
मूल--तएणं ताओ सव्वयाओ अज्जाओ अण्णया कयाइं बिभेलाओ संनिवेसाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता, बहिया जणवयविहारं विहरंति ॥२३॥
__ छायाः-ततः खलु ताः सुव्रता आर्या अन्यदा कदाचित् बेभेलात् संनिवेशात् प्रतिनिष्कामन्ति, प्रतिनिष्क्रम्य बाह्यं जनपद-विहारं विहरन्ति ॥२३॥
पदार्थान्बयः-तएणं ताओ सम्वयाओ अज्जाओ-सोमा को श्राविका धर्म समझाने के अनन्तर वे सुव्रता आर्यायें, अण्णया कयाई-साध्वी-मर्यादा के अनुरूप समय आने पर, बिभेलाओ संनिवेसाओ-बिभेल नामक ग्राम से, पडिनिक्खमंति–चल पड़ेगी और, पडिनिक्खमित्ता-वहां से चल कर, बहिया जणवयविहारं-अनेक जन पदों (प्रान्तों में), विहरंति-विहार करती रहेंगी॥२३॥
मूलार्थ- सोमा को श्राविका धर्म का उपदेश देने के अनन्तर सुव्रता आर्यायें साध्वी-मर्यादा के अनुरूप समय आने पर बिभेल नामक ग्राम से चल पड़ेंगी और वहां से चल कर अनेक जनपदों (प्रान्तों) में विहार करती रहेंगी ॥२३ ।
टोका-सूत्र का भाव स्पष्ट है, फिर भी इस सूत्र के द्वारा यह शिक्षा मिलती है कि साध्वियों को साध्वी-मर्यादा के अनुरूप दो मास से अधिक कहीं रहना कल्पता नहीं है, अतः उचित अवसर आते ही उन्हें विहार कर ही देना चाहिये ॥ २३ ॥
मूस-तएणं ताओ सुध्वयाओ अज्जाओ अन्नया कयाई पवाणुपुर्दिव जाव विहरइ । तएणं सा सोमा माहणी इमोसे कहाए लट्ठा समाणी