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निरयावलिका]
[वर्ग-चतुर्थ
अद्वितीय, केवलिपण्णात्तं धम्म परिकहेइ-केवली-प्ररूपित धर्म कहेंगी, अर्थात् धर्म के ऐसे तत्त्व समझायेंगी, जहा जीवा वज्झंति-कि कैसे जीव कर्म-बन्धन में बधते हैं।
तएणं सा सोमा माहणी-तत्पश्चात् वह सोमा ब्राह्मणी, सुब्वयाणं अज्जाणं अन्तिएसुव्रता आर्याओं के पास से (अर्थात् उनके मुख से), जाव दुवालसविहं सावगधम्म-बड़ी श्रद्धाभक्ति के साथ बारह प्रकार के श्रावक धर्म को पडिवज्जइ-स्वीकार करेगी और, पडिवज्तित्तास्वीकार करके, सुव्वयाओ अज्जाओ-उन सुव्रता साध्वियों को, वंद इ नमसइ-वन्दना नमस्कार करेगी तथा, वंदित्ता नमंसित्ता-वन्दना नमस्कार करके, जामेव दिसि पाउन्भूया -जिस दिशा (मार्ग) से आई थी, तामेव दिसं पडिगया-उसी दिशा में लौट जायेगी, तएणं सा सोमा माहणीतब से वह सोमा ब्राह्मणी, समणोवासिया जाया-श्रमणोपासिका बन गई, अभिगत०-सभी जीव-अजीव आदि तत्त्वों को जानकर, अप्पाणं भावेमाणो-अपनी आत्मा को धर्म में लगाती हुई, विहर-विचरण करेगी-धर्ममय जीवन व्यतीत करेगी ॥२२॥
मूलार्थ-तत्पश्चात् (पति का परामर्श सुनने के अनन्तर) वह सोमा ब्राह्मणी स्नान करेगी और वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर अपनी दासियों के समूह से घिरी हुई अपने घर से बाहर निकलेगी और बाहर आते ही विभेल ग्राम के मध्य भाग से निकतती हुई जहां पर सुव्रता साध्वियों का उपाश्रय होगा वहीं पर पहुंचेगी और
और वहां पहुंचकर उन सुव्रता साध्वियों को वन्दना-नमस्कार करेगी, उनकी पर्युपासना (सेवा-भक्ति) करेगी । तदनन्तर वे सुव्रता आर्यायें सोमा ब्राह्मणी को अद्वितीय अश्रुतपूर्व केबली-प्ररूपित धर्म के ऐसे तत्त्व समझायेंगी कि ये जीव कर्म-बन्धनों में कैसे बन्धते हैं ?
___ तत्पश्चात् वह सोमा ब्राह्मणी सुव्रता आर्याओं के पास से अर्थात् उनके मुख से बड़ी श्रद्धा - भक्ति के साथ बारह प्रकार के श्रावक-धर्म को स्वीकार करेगी और स्वीकार करके उन सुव्रता आर्याओं को वन्दना-नमस्कार करेगी और वन्दना नमस्कार करके जिस दिशा (मार्ग) से आई थी उसी मार्ग से वह अपने घर लौट जाएगी।
__तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी श्रमणोपासिका (श्राविका) बन गई और सभी जीव-अजीव आदि तत्त्वों को जान कर अपनी आत्मा को धर्म में लगाती हुई विचरण करेगी अर्थात् धर्ममय जीवन व्यतीत करेगी ॥ २२ ॥