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निरयावलिका)
।२६४)
[वग-चतुथ
आपकी अनुमति (आज्ञा) प्राप्त करके, सुव्वयाणं अज्जाणं-सुव्रता आर्याओं के, जाव पव्व इत्तए(पास जाकर) दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूं, तएणं से रट्ठकूडे-तब यह सुनकर राष्ट्रकूट, सोमां माहणि-सोमा ब्राह्मणी से, एवं वयासो-इस प्रकार बोलेगा, मा णं तुम देवाणप्पिए-हे देवानुप्रिये ! इदाणि-अभी तुम, मडा भवित्ता-मुण्डित होकर, जाव पव्वयाहि-प्रव्रज्या मत ग्रहण करो, भुजाहि ताव देवाणुप्पिए-हे देवानुप्रिये, अभी तुम, मए सद्धि-मेरे साथ, विउलाई भोगभोगाई-अनेकविध भोगोपभोगों का (उपभोग करो), ततो पच्छा तत्पश्चात्, भत्तभोइ-मुक्तभोगिनी बन कर, सम्वयाणं अज्जाणं अंतिए-सुव्रता आर्याओं के पास जाकर, मुंडा जाव पव्वयाहि-मण्डित होकर प्रव्रज्या ग्रहण कर लेना ।।२१।।
मूलार्थ- तत्पश्चात् (आर्याओं के चले जाने के बाद) जहां उसका पति राष्ट्रकूट . . होगा वह वहीं पर आयेगी और हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोलेगो-हे देवानुप्रिय ! मैंने निश्चित ही आर्याओं के पास जाकर धर्म-तत्व का श्रवण किया है, उसी धर्म को मैं ग्रहण करना चाहती हूं; क्योंकि वही धर्म मेरी रुचि के अनुकूल है। इसलिये हे देवानुप्रिय ! मैं आपकी अनुमति (आज्ञा) प्राप्त करके, सुव्रता आर्याओं के पास जाकर दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूं।
यह सुनकर राष्ट्रकूट अपनी पत्नी सोमा ब्राह्मणी से इस प्रकार बोलेगा कि हे देवानुप्रिये ! अभी तुम मुण्डित होकर प्रव्रज्या मत ग्रहण करो, हे देवानुप्रिये ! अभी तुम मेरे साथ अनेकविध भोगोपभोगों के साधनों का उपभोग करो, तत्पश्चात् भुक्तभोगिनी बन कर सुव्रता आर्याओं के पास जाकर प्रवज्या ग्रहण कर लेना ॥२१॥
टोका–सांसारिक उलझनों और परेशानियों के कारण भी कभी-कभी मानव-मन में सांसारिक उदासीनता आ जाती है, तब मनुष्य सब कुछ छोड़ कर साधु-जीवन अपना लेना चाहता है। सोमा भी अधिक सन्तान रूप उलझन के कारण दीक्षित होना चाहती है, किसी दष्टि से शान्ति पाने के लिये इसे उचित भी माना जा सकता है। वैसे स्वाभाविक विरक्ति ही साधुत्व अपनाने का कारण हो यही उचित होता है।
राष्ट्रकूट अब भी मोहासक्ति के कारण सोमा को साध्वी न बनने का परामर्श देता है, क्योंकि संसार में व्यक्ति स्व-सुख को ही प्रमुखता दिया करता है ।। २१ ॥
मूल-तएणं सा सोमा माहणी व्हाया जाव सरीरा चेडियाचक्क