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वर्ग - चतुर्थ
( २६१ )
[ निरयावलिका
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सिज्ज एहि — कुछ चित्त होकर सोए रहते हैं, मुत्तमाणेहि - मल-मूत्र त्यागते रहते हैं, जावउनके मलमूत्रादि से लिपटी, दुज्जाए हि-उन जन्म से ही दुख देनेवाले बच्चों के कारण, नो संचामि - मैं नहीं प्राप्त कर सकती, रट्ठकूडेण सद्धि - अपने पति राष्ट्रकूट के साथ, विउलाई भोग भोगाइ भुजमाणी - अनेक विध ( गृहस्थोपयोगी ) भोगों उपभोगों का सुख भोगते हुए, विहरितएए-जीवन-यापन का सुख । तं इच्छामि अज्जाओ - हे आर्याओं इसलिये मैं चाहती हूं कि, सोमाए माहणी - मुझ सोमा ब्राह्मणी के लिये विचित्तं जाव केवलिपण्णत्तं - वह सर्वथा अद्भुत ( अद्वितीय) एवं तीर्थङ्कर भगवान द्वारा प्ररूपित, धम्मं परिकहेइ-धर्म मुझे बतलायें । तएणं सासोमा माहणी - तदनन्तर व वह सोमा ब्राह्मणी, तासि अज्जाणं अतिए - उन साध्वियों के पास से. धम्मं सोच्चा निसम्म - धर्म-तत्व को सुनेगी और सुनकर हट्ठतुट्ठा - हर्षित होकर सन्तुष्ट होगी, जाव हियया - अपने हृदय से, ताओ अज्जाओ–उन आर्याओं को, वंदइ नमसइवन्दना नमस्कार करेगी, वंदित्ता नमसित्ता - और वन्दना नमस्कार करके, एवं वयासीइस प्रकार निवेदन करेगी, सद्दहामि णं अज्जाओ–हे आर्याओं ! मैं केवली प्ररूपित धर्म पर श्रद्धा करती हूं, निग्गंथं पावणं जाव अब्भट्ठेमि णं - मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन का आदर करती हूं अज्जाओ जाब से जहेयं तब्भे वयह- हे आर्याओ ! जैसा आप कहेंगी मैं वैसा ही करूंगी, जं नवरं - क्योंकि वही सत्य है, अज्जाओ - हे आर्याओं, रट्ठेकूड आपुच्छामि मैं जाकर राष्ट्रकूट से पूछती हूं (आज्ञा लेती हूं), तएणं अहं - तब मैं, देवाणुप्पियाणं अन्तिए - आप देवानुप्रियाओं (साध्वियों) के पास आकर, मुण्डा जाव पन्त्रयामि - मुण्डित बनूंगी और प्रवज्या ग्रहण करूगी। अहासु देवापिए - हे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो (वैसा करो) मा पडिबंध - शुभ काम में तएणं सा सोमा माहणी - तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी, ताओ वंदइ नमसइ - वन्दना नमस्कार करेगी, वंदित्ता नमसित्ता-वन्दना पडिविसज्जेइ – वापिस जाने के लिये विसर्जित करेगी ॥२०॥
प्रमाद नहीं करना चाहिये । अज्जाओ–उन श्रार्याओं को, नमस्कार करके (वह उन्हें),
मूलार्थ — उन्हीं दिनों उस समय 'सुव्रता' नाम से प्रसिद्ध साध्वियां, ईर्या-समिति
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के अनुरूप चलती हुई, बहुत सी साध्वियों के साथ भगवान द्वारा निर्दिष्ट साध्वी - आचरण के अनुरूप परम्परा से विचरती हुई जहां विभेल नामक ग्राम था वहीं पर पहुच जाती हैं । और वहां पहुंच कर शास्त्रप्रतिपादित साध्वी आचरण के अनुसार अवग्रह धारण कर उपाश्रय में ठहरती हैं। फिर भिक्षा के लिये विभेल ग्राम में ऊंच-नीच ( अमीर-गरीब ) घरों में जाती हैं। एक बार उन सुव्रता आर्याओं का एक संघाडा (समूह) विभेल ग्राम में अमीर-गरीब घरों में भिक्षार्थ विचरण करते हुए, राष्ट्रकूट के घर में प्रविष्ट होंगी । तब सोमा ब्राह्मणी घर में आती हुई उन साध्वियों को देखती है और देखते