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निरयावसिका]
(२६०)
[वर्ग-चतुर्थ
विपुलेन अशनं० ४ प्रतिलम्भयति, प्रतिलम्भ्य एवमवादीत्-एवं खलु अहभार्याः ? राष्ट्रकुटेन सार्द्ध विपुलान् यावत् संवन्सरैः द्वात्रिंशद् दारकरूपान् प्रजाता। ततः खलु अहं तैर्बहुभिदार कैश्च यावद् डिम्भिकाभिश्च अप्पेककैः उत्तानशयकैः यावत् मूत्रद्भिः दूतिः यावद् नो शक्नोमि राष्ट्रकटेन सार्द्ध विपलान् भोगभोगान भजाना विहम, तदिच्छामि खल आर्याः! यमाकमति के धर्म' निशामरि तुम् । ततः खलु ता आर्याः सोमाय ब्राह्मण्य विचित्रं यावत् के वलि प्रज्ञप्तं धर्म परिकथयन्ति । ततः खलु सा सोमा ब्राह्मणी तासामार्याणामन्तिके धर्म श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टा० यावद् हृदया ता आर्या वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत्-श्रद्दधामि खलु आर्याः निर्ग्रन्थं प्रवचनम्, इदमेतद् आर्याः ! यावत् यद् यथेदं यूयं वदथ, यद् नवरमार्याः : राष्ट्रकूटमापृच्छामि । तत: खलु अहं देव नप्रियाणामन्तिके मुण्डा यावत् प्रव्रजामि । यथासुखं देवानुप्रिये ! मा प्रतिबन्बम् । ततः खल सा सोम । ब्रह्मणी ता आर्या वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमंस्थित्वा प्रतिविसर्जयति ॥२०॥
पदार्थान्वयः-तेणं कालेणं तेणं समएणं-उन्हीं दिनों उस समय, सुव्वयाओ नाम अज्जाओसवता विशेषण से प्रसिद्ध साध्वियां, इरियासमियाओ-ईर्या समिति के पालन-पूर्वक, बहुपरिवाराओ-बहत सी साध्वियों के साथ, पुवाणपब्वि-तीर्थकर निर्दिष्ट परम्परा से विचरती हई, जेणेव विभेले सनिवेसे-जहां विभेल नामक ग्राम होगा, तेणेव उवागच्छइ-वहीं पर पहुंचेगी, उवागच्छित्ता-और वहां पहुंचकर, महापडिरूवं-शास्त्र - प्रतिपादित साध्वो - आचरण के अनुरूप, ओग्गह-अवग्रह धारण कर. जाव विहरंति-उपाश्रय में ठहरेंगी और भिक्षा के लिये विभेल ग्राम के ऊंच-नीच घरों में जाएंगी। तएणं तासि सुम्वयाण अज्जाणं-एक बार उन सुब्रता प्रार्याओं का, एगे संघाडए-एक संघाड़ा (साध्वियों का एक समूह), विभले सन्निवेसेविभेल ग्राम में, उच्चनीय जाव अडमाणे-ऊंच-नीच (अमीर - गरीब) घरों में भिक्षा के लिये विचरती हुई, रट्ठकडस्स गिह अणुपविठे-राष्ट्रकूट के घर में भी प्रविष्ट होंगी। तएणं सा सोमा माहणी-तब सोमा ब्राह्मणी, तओ अज्जाओ एज्जमाणीओ-घर में आती हुई उन आर्याओं को, पासइ-देखेगी, पासित्ता हट्ठतुट्ठा-और देखकर प्रसन्न एवं सन्तुष्ट होगी, खिप्पामेब असणाओ-वह जल्दी ही अपने आसन से, अब्भुढेइ-उठ खड़ी होगी, अन्भुद्वित्ता-और उठ कर, सत्तठ्ठपयाइं अणुगच्छइ-सात-आठ कदम पीछे हटेगी, अणुगच्छित्ता-और पीछे हट कर, वंदइ नमसइ-वन्दना नमस्कार करेगो, (और), विउलेणं असणं ४ पडिलाभेइविपुल अशन (आहार) पान आदि से, पडिलाभेइ-उन्हें आहार-पानो का लाभ देगी, पडि. लाभित्ता-और लाभ देकर, एवं वयासी-इस प्रकार निवेदन करेगी, एवं खलु अहं अज्जागो-हे आर्याओं ! मैं निश्चित ही, रट्ठाडेणं सद्धि-अपने पति राष्ट्रकूट के साथ, विउलाई जाव–अनेक विध भोगों को भोगते हुए, संवच्छरे-संवच्छरे - प्रतिवर्ष, जगलं पयापि-दो बच्चों को जन्म देती हूं, सोलसाह संवच्छरेहि-इस प्रकार मैंने सोलह वर्षों में, बत्तीसं दारगरूचे पयाया-बत्तीस बच्चों को जन्म दिया है, तएणं अहं-- इस प्रकार मैं, तेहि बहहिं दाग्एहिउन बहुत से बच्चों के (जिनमें से) डिभियाहिं य-अल्पवयस्क बच्चों में से, अप्पेगइएहिं उत्ताण