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निरयावलिका
(२८६)
(वर्ग-चतुर्थ
पेशाब और उल्टियों से भर जाएगी मैले कुचैले कपड़ों के कारण कान्तिविहीन प्रतीत होने लगेगी, गन्दगी से भरी रहने के कारण बीभत्स सी एव दुर्गन्धि से युक्त होकर वह राष्ट्रकट के साथ भोग भोगने में सर्वथा असमर्थ हो जाएगी ॥१८॥
टोका-प्रस्तुत सूत्र में सन्तान की अधिकता के कारण गृहस्थ उन प्यारे लगनेवाले बच्चों से कैसे तंग होने लगते हैं, इसका सुन्दर चित्रात्मक एवं सजीव वर्णन कर सोमा की दुर्दशा का वर्णन किया गया है । और साथ ही यह भी बतलाया गया है कि पत्नी को बहुत प्यार करनेवाला पति भी उन बच्चों में उलझ कर गन्दी लगती हुई पत्नी की भी उपेक्षा कर देता है, अत: ऐसी अवस्था में स्त्रियां सन्तान-सुख और पति-प्रेम दोनों से वंचित हो जाती हैं। पन्द्रह वर्ष पहले पहल उत्पन्न हुए बच्चों के लिये "दारग" शब्द का, बीच के वर्षों में होने वाले बच्चों के लिये कुमार कुमारी और पन्द्रहवें सोलहवें वर्षों में उत्पन्न होनेवाले बच्चों के लिये "डिम्भ-डिम्भिका" शब्दों का प्रयोग किया गया है, अत: यहां तीनों शब्द क्रमशः सार्थक हैं ।।१८।।
मूल-तए णं तोसे सोमाए माहणीए अण्णया कयाई पुज्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे जाव समुपज्जित्था-एवं खलु अहं इहिं बहूहिं दारहिं य जाव डिभियाहिं य अप्पेगइएहिं उत्ताणसेज्जएहि य जाव अप्पेगइह मुत्तमाणेहिं दुज्जाएहिं दुज्जम्मएहि हयविप्पहयभग्गेहिं एगप्पहारपडिएहिं जाणं मुत्तपुरीसवमियसुलित्तोवलित्ता जाव परमदुब्भिगंधा नो संचाएमि रट्ठकूडेण सद्धि जाव भुंजमाणी विहरित्तए । तं धन्नाओ णं तओ अम्मयाओ जाव जीवियफले जाओणं बंझाओ अवियाउरीओ जाणुकोप्परमायाओ सुरभिसुगंधगंधियाओ विउलाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणीओ विहरंति, अहं णं अधन्ना अपुण्णा अकयपुण्णा नो संचाएनि रट्ठकूडेण सद्धि विउलाई जाव विहरित्तए ॥१६॥
____ छाया-ततः खलु तस्याः सोमाया ब्राह्मण्या अन्यदा कदाचित् पूर्वरात्रापररात्रकालसमये कुटुम्बजागरिकां जाग्रन्या अयमेत पो यावत् समुदपद्यत-एवं खलु अहमेभिर्बहुभिर्दारकैश्च यावद्