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________________ वर्ग चतुर्थ ] ( २८५ ) [ निरयावलिका गरम वस्तु को छूकर जल जाएगा, दसमाह- कोई बच्चा किसी को दांतों से काट खाएगा, माहि- कोई उल्टी (वमन) कर रहा होगा, छेरमाणेहि — कोई शौच (टट्टी) कर रहा होगा, मुत्तमाह- कोई पेशाब कर देगा, ( और वह सोमा स्वयं), मुत-पुरीस वनिय सुलित्तोवलित्ताटट्टी-पेशाब और बच्चों की उल्टी से भर जायेगी, मइल वसण- उच्चडा - मैले कपड़ों के कारण कान्तिविहीन अथवा गन्दी प्रतीत होने वाली असुइबीभच्छा - गन्दगी से भरी होने के कारण बीभत्स लग रही परमदुग्गंधा- अत्यन्त दुर्गन्धित नो संचाएइ - अब वह इस योग्य नहीं रही थी कि वह रट्ठकूडेणं सद्धि - राष्ट्रकूट नामक अपने पति के साथ बिउलाई भोग भोगाई – अनेकविध भोगों का, भुंजाणी विहरितए - उपभोग करती हुई विहरण कर सके ।। १८ ।। मूलार्थं – तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूट के साथ भोगों का आनन्द ती हुई प्रतिवर्ष सन्तान युगल को जन्म देती हुई सोलह ही वर्षों में बत्तीस बच्चों को जन्म देगी । तदनन्तर वह सोमा ब्राह्मणी उन बहुत से (बत्तीस) लड़के लड़कियों- कुमार- कुमारियों एवं अल्पवयस्क बालक-बालिकाओं में से कोई तो ऊपर ( आकाश की ओर मुख करके सोते रहेंगे, कोई बच्चा चीख-पुकार मचाता रहेगा, कोई बच्चा चलना चाहेगा, कोई बच्चा पड़ोसियों के आंगन में पहुंच जाएगा, कोई बच्चा चलने को चेष्टा करेगा, कोई बालक धरती पर गिर पड़ेगा, कोई बच्चा उसका दूध पीने के लिये उसके स्तन ढूंढेगा, कोई बालक दूध की तलाश कर रहा होगा, कोई बच्चा खिलौने ढूंढ रहा होगा; कोई बच्चा खाद्य पदार्थों की तलाश कर रहा होगा, कोई बालक भोजन भात) खोज रहा होगा, कोई बालक पानी अथवा अन्य पेय पदार्थ पाने को भटक रहा होगा, कोई हंस रहा होगा, कोई रूठ रहा होगा, कोई गुस्से में भर रहा होगा, कोई बच्चा अपनी वस्तु पाने के लिये दूसरों से लड़ रहा होगा। कोई बच्चा दूसरे बच्चे को मार रहा होगा; कोई मार खाकर प्रलाप कर रहा होगा, कोई किसी के पीछे उसे पकड़ने के लिये भाग रहा होगा, कोई रो रहा होगा, कोई क्रन्दन कर रहा होगा, कोई सुबक रहा होगा ( होठों को फड़फड़ाते हुए अन्दर ही अन्दर रो रहा होगा), कोई जोर-जोर से चिल्लाते हुए रो रहा होगा, कोई सो रहा होगा, कोई बच्चा अग्नि या किसी गरम पदार्थ को छूकर जल रहा होगा, कोई बालक दूसरे बालक को दांतों से काट रहा होगा कोई उल्टी (वमन) कर देगा कोई शौच (टट्टी) कर रहा होगा और कोई पेशाब कर देगा, अत: वह सोमा स्वयं बच्चों की टट्टी
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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