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________________ निरयावलिका] ( २८४) वर्ग-चतुर्थ व ह्मणी तैर्बहुभिर्दार कैश्च दारिकाभिश्च कुमारैश्च कुमारिकाभिश्च डिम्भश्च डिम्भिकाभिश्च अप्येककै उत्तानशयकश्च, अप्येकक. स्तनितश्च अप्येककैः स्पृहकपादै , अप्येककैः पराङ्गणकः, अप्येकको पराक्रममाणः, अप्येककैः, प्रस्खलनकै , अप्येककैः स्तनं मृग्यमाणः, अध्येककैः, क्षीरं मृग्यमाणः, अप्येककैः, खेलनकं मृग्यमाणैः, अप्येक कैः खाद्यक मग्यामणैः, अप्येककैः कूरं (भक्त) मग्यमाणः, पानीयं मृग्यमाणः हसद्भिः, रुष्यद्भिः, आक्रोद्भिः, आक श्यद्भिः, हन्यमानः, विप्रलपद्भिः, अनुगम्यमानः, रुदद्भिः, क्रन्दद्भिः, विलपद्भिः, कूजद्भि. उत्कूद्भिः, निर्धावद्भिः, प्रलम्बमानः, दहद्भिः, दशद्भिः, वद्भिः छरद्भिः, मत्रद्धिः, मूत्रपुरोष वान्तसुलिप्तोपलिप्ता मलिनवमनपुच्चडा यावद अशुचिबीभत्सा परमदुर्गन्धा नो शक्रोति राष्कूटेन सार्ध विपुलान् भोगभोगान् भुजाना विहर्तुम् ।१८। पदार्थान्वयः-तएणं सा सोमा माहिणी-तदनन्तर (विवाहोपरान्त) वह सोमा ब्राह्मणी, रटुकडेणं सद्धि-राष्ट्रकूट के साथ, विउलाई-अनेक विध, भोगभोगाइं भुंजमाणी-भोगों को भोगती हुई, संवच्छरे-संवच्छरे-प्रतिवर्ष, जुयलगं पयायमाणी-सन्तान-युगल (जोड़ी) को जन्म देती हुई, सोलसहि संवच्छरेहि-सोलह वर्षों में, बत्तीसं दाणरूवे पयाई- बत्तीस बच्चों को जन्म देगी। तएणं सा सोमा माहिणी-तब वह सोमा ब्राह्मणी, तेहिं बहूहि दारगेहि य दारियाहि यउन बहुत से लड़के-लड़कियों, कुमारएहि य कुमारियाहि य-कुमारों एवं कुमारियों, डिभएहि य डिभियाहि य-अल्प वयस्क बालक-बालिकाओं में से, अप्पेग इएहिं उत्ताणसेज्जएहि-कोई एक उत्तान (ऊपर की ओर मुख करके) सोते रहेंगे, य अप्पेगइएहि थणियाएहिं य-और कोई एक बच्चा चीख रहा होगा, अप्पेगइएहि पीहगपाएहि-कोई एक चलना चाहेगा, अप्पेगइएहि परंगणपति कोई बच्चा दूसरों के आंगन में चला जाएगा, अप्पेगह परकममाहि-कोई बच्चा चलने की चेष्टा करेगा, अप्पेगइएहि पक्खोलणएहि-कोई बच्चा गिर पड़ेगा, अप्पेगइएहि थणं मग्गमाहि-कोई बच्चा (दुग्ध-पान के लिये उसके) स्तनों को ढूंढेगा, अप्पेग इएहि खीर मग्गमाहि-कोई बच्चा दूध की तलाश कर रहा होगा, अप्पेग इएहि खिल्लणयं मग्गमाणेहिकोई बच्चा खिलौने ढूंढ रहा होगा, अप्पेगइएहि खज्जगं मग्गमाणेहि-कोई बच्चा खाद्य पदार्थों को ढूंढ रहा होगा, अप्पेगइएहि कूरं मग्गमाणेहि-कोई बच्चा भोजन (भात) की तलाश कर रहा होगा, अप्पेगइएहिं पाणीयं मग्गमाणेहि-कोई बच्चा पीने के लिये पानी या अन्य पेय ढूंढ रहा होगा, हसमाहि-कोई हंस रहा होगा, रूसमाणेहि-कोई रूठ रहा होगा, अक्कोस्समाणेहि-कोई गुस्से में भर रहा होगा, अक्कुस्समाहि-कोई बच्चा अपनी वस्तु पाने के लिये दूसरों से लड़ रहा होगा, हणमाणेहि-को दूसरे बच्चों का मार रहा होगा, विप्पलापमाणेहि-कोई प्रलाप कर रहा होगा, अणुगम्ममाणेहि-कोई किसी के पोछे भाग रहा होगा, रोवमाणेहि-रुदन कर रहा होगा, कंदमाणेहि-कोई क्रन्दन चोख-पुकार) कर रहा होगा, विलवमाणेहि-विलाप कर रहा होगा कूवमाणेहि-सुबक रहा हागा (फड़ फड़ाते हुए होंठों से अन्दर ही अन्दर रो रहा होगा), उक्कूवमाणेहि-जोर-जोर से चिल्लाते हुए से रहा होगा, निद्रायमाहि-कोई सो रहा होगा, पलंबमाणेहि-कोई मां का आंचल पकड़ कर लटक रहा होगा, बहमाहि-कोई प्राग से या किसी
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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