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वर्ग – चतुर्थ ].
( २८३)
[ निरयावलिका
टीका - इस सूत्र में बहुपुत्रिका देवी के भविष्य-भावी जीवन का वर्णन किया गया है कि वह भारतवर्ष में ही विन्ध्याचल पर्वत की तलहटी में बसे विभेल नामक ग्राम में एक ब्राह्मणपरिवार में जन्म लेगी । उसके माता-पिता उसके जवान हो जाने पर उसका विवाह अपने भानजे राष्ट्रकूट के साथ कर देंगे ।
. राष्ट्रकूट से पहले प्रिय वचनों द्वारा स्वीकृति लेंगे और फिर शुल्क अर्थात् दहेज भी देंगे । इस घटना के वर्णन से ज्ञात होता है कि उन दिनों निकट की रिश्तेदारियों में भी कन्या दी जाती थी, उस समय भी दहेज देने को प्रथा थी । तब बाल-विवाह भी नहीं होते थे ।। १७ ।।
मूल - तए णं सोमा माहिणी रट्ठकूडेणं सद्धि बिउलाई भोग भोगाई भुंजाणी संच्छ संवच्छरे जुयलगं पयायमाणी सोलसेहि संवच्छरोहिं बत्तीसं दारणरूवे पयाइ । तए णं सा सोमा माहणी तेहि बहूहिं बारगेहि यदारियाहिंय कुमारएहिं य कुमारियाहिं य डिंभएहि य डिभियाहि य अप्पेगइएहिं उत्ताणसेज्जएहि य अप्पेगइएहि यणियाएहिं य अप्पेगइएहि पीहापाएहि अप्पे एहि परंगणएहि अप्पेगइएहिं परक्कममाणेहि अप्पेगइएहि पक्खोलणएहिं अप्पेगइएहि थणं मग्गमाणे अप्पेगइएहिं खीरं मग्गमाणेहि अप्पेगइएहिं खिल्लणयं मग्गमाणेहिं अप्पेगइएहि खज्जगं अपेग एहिं कूरं मग्गमाणे पाणियं मग्गमाणेहिं हसमाणेहिं रूसमा अक्कुसमाणेह अक्कोस्समाणेह हणमाणेहि विप्पलायमाणेहिं अणुगम्ममाणेहिं रोवमाणेहिं कंद माणं हि विलवमाणेहिं कुवमाणेहिं उक्कूमाहं निद्वायमाणेहिं पलंबमाणेहिं दहमाणेहिं दंसमाणेह वममाणेहिं छेरमाणेहिं मुत्तमाहं मुत्तपुरी सवमियसुलित्तोवलित्ता मइलवसणपुच्चडा जाव असुइबीभच्छा परमदुग्गंधा नो संचाएइ रट्ठकूडेणं सद्धि विजलाई भोग भोगाई भुंजमाणी विहरित ॥ १८ ॥
छाया - ततः खलु सा सोमा ब्राह्मणी राष्ट्रकूटेन सार्द्धं विपुलान् भोगभोगान् भुञ्जाना संवत्सरे संवत्सरे युगलं प्रजनयन्ती षोडशभिः संवत्सरः द्वात्रिंशद् वारकरूपाणि प्रजनयति । ततः खलु सा सोमा