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निरयावलिका]
(२८२)
(वर्ग-चतुर्थ
प्रकार से संभाल करके उसको सुरक्षित रखेगा, मा णं सीय जाव-उसे शीत-वाधा न सताये, मा णं विवहा रोगातका फुसन्तु-अनेक प्रकार के रोग इसका स्पर्श भी न कर सकें (इस बात का भी वह ध्यान रखेगा) ।।१७।।
मूलार्थ - (गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर से प्रश्न किया) कि- भगवन् ! उस बहुपुत्रिका देवी की उस सौधर्म देवलोक में कितने समय की स्थिति कही गई है ?
(भगवान् महावीर ने उत्तर दिया) वहां उसकी स्थिति चार पल्योपम की होगी।
(गौतम पुनः प्रश्न करते हैं)- वह बहुपुत्रिका देवी उस सौधर्म देवलोक से अपनी देवलोक की आयु पूर्ण होने पर, उसका स्थिति काल समाप्त होने पर, देवभव का समय पूर्ण हो जाने पर वह उस देवलोक से च्यव कर कहां जायेगी- कहां उत्पन्न होगी? ।
(भगवान महावीर ने गौतम के प्रश्न का पुनः समाधान करते हुए कहा- गौतम वह इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के एक भाग भारत वर्ष में ही विन्ध्याचल पर्वत की तलहटी में बसे विभेल नामक ग्राम में एक ब्राह्मण-परिवार में लड़की के रूप में आकर जन्म लेगी। तत्पश्चात् उस लड़की के माता-पिता ग्यारह दिन बीत जाने पर जब बारहवां दिन व्यतीत हो रहा होगा तो वह उस लड़की का नामकरण "सोमा" करेंगे । तदनन्तर धीरे-धीरे वह सोमा अपने बचपन को पार करके जब युवती हो जायेगो, तब वह रूप यौवन और सुन्दरता से अत्यन्त उत्कृष्ट होगी, तत्पश्चात् उसके माता-पिता यह जानकर कि वह यौवन-सुखों की महत्ता को जान गई है और युवती हो गई है, तब उन्होंने अपने भानजे राष्ट्रकूट को स्वीकृति-सूचक शब्दों द्वारा और शुल्क (दहेज) के रूप में देय द्रव्य देते हुए सोमा को उसे पत्नी के रूप में दे देगा, अर्थात् उसके साथ उसका विवाह कर देगा। राष्ट्रकूट को अपनी पत्नी सोमा प्रिय एवं अत्यन्त सुन्दर लगेगी अत: वह आभूषण रखने के डिब्बे के समान, तेल रखने के पात्र के समान और वस्त्र रखने की पेटी के समान और हीरे मोती आदि रखने की तिजौरी के समान उसको अच्छी तरह सुरक्षित रक्खेगा; वह यह भी ध्यान रक्खेगा कि इसे शीत-वाधा न सताये और कोई भी रोग इसका स्पर्श न कर सके ॥१७॥