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वर्ग--चतुर्थ
(२८१)
[निरयावलिका
- पदार्थान्वयः- (गौतम ने भगवान महावीर से प्रश्न किया)-बहुपुत्तियाए णं भंते ! -भगवन् उस बहपत्रिका देवी की, केवइयं कालं-कितने समय तक वहां (सौधम देवलोक में), ठिE पत्ता-स्थिति कही गई है ?
गोयमा-(भगवान् महावीर ने कहा) गौतम ! चत्तारि पलिओवमाई–चार पल्योपम की, ठिई पग्णता-स्थिति कही गई है :
(गौतम पुनः प्रश्न करते हैं। बहुपत्तिया णं भन्ते-भगवन् ! वह बहुपुत्रिका देवी, ताओ देवलोगाओ उस देवलोक से, आउक्खएणं-ग्रायु पूर्ण होने पर, ठिइक्खएणं-स्थित पूर्ण होने पर, भवक्खएणं-देव-भव का क्षय होने पर, अणंतरं -तदनन्त र वह, चयं च इत्ता - वहां से च्यवन करके, कहिं गििहइ-कहां जायेगी, कहिउवजिहिइ–कहाँ उत्पन्न होगी?
(भगवान् महावीर ने उत्तर में कहा)-गोयमा ! इहेव जम्बूदीवे दीवे -इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारहेवासे–भारत वर्ष में ही, विज्झगिरि पायमले-विन्ध्य पर्वत की तलहटी में, विभेनसंमिवेसे-विभेल नामक ग्राम में, माहण कुलंसि - ब्राह्मण-कुल में, दारियताए-लड़की के रूप में, पच्चायाहिइ-लौट आएगी अर्थात् जन्म लेगी, तएणं-तत्पश्चात्, तीसे दारियाएउस लड़की के, अम्मा-पियरो-माता-पिता, एक्कारसमे दिवसे वितिक्कन्ते-ग्यारह दिन बीत जाने पर, बारसेहि दिवसेहि वितिक्कितेहि-बारहवां दिन जब बीत रहा था अयमेयारूवं नामधिज्ज करेंति-तब उसका नामकरण करेंगे, होउणं अम्हं इमोसे दारियाए नामधिज्ज सोमा-हमारी इस लड़की का नाम होगा सोमा, ततः खलु सोमा-तदनन्तर वह सोमा, उन्मुक्कबालभवा-बालकपन को छोड़कर. विणयपरिणयमेत्ता-वैषयिक सुखों के परिज्ञान के साथ युवा अवस्था को प्राप्त हो गई, जोव्वणगमणुपत्ता–युवती हो जाने पर, स्वेण य, जोवणेण य, लावण्णेण य - रूप यौवन और सुन्दरता से, उक्किट्ठा-उत्कृष्ट, उक्किटुसरीरा-अत्यन्त सुन्दर शरीर वाली, जाव भविम्सइवह होगी। एणं तं सोमं दारियं-तत्पश्चात् उस सोमा नामक लड़की को, अम्मा-पियरो-मातापिता ने, उन्मुक्कबाल भावं-वह वचपन को पार कर गई, विणय-परिणयमित्तं-विषय-सुख, से अभिज्ञ—जानकार, जोवणगम पत्त-युवती हो जाने पर, पडिकूविएणं-स्वीकृति सूचक शब्दों द्वारा, सुक्कणं-शुल्क रूप देय द्रव्य देते हुए, पडिरूवएणं-प्रतिरूप अर्थात् मनोनुकूल वचनों द्वारा, नियकस्स-अपने, भायविज्जस्स रटूकडयस्स-भानजे राष्ट्र कूट को, भारियत्ताए--पत्नी के रूप में, दल इस्सइ-प्रदान कर देगा, अर्थात् राष्ट्रकूट के साथ उसका विवाह कर देगा, साणं तस्स भारिया-राष्ट्रकूट को अपनी पत्नी सोमा, इट्टा कता भविस्सइ-प्रिय एवं अत्यन्त सुन्दर लगेगी, (अतः वह), जाव-यावत्, भंडकरंडगसमाणा-आभूषण रखने के डिब्बे के समान, तेल्लकेला इव-तेल रखने के पात्र के समान, सुसंगोविआ-अच्छी प्रकार सुरक्षित, चेलपेला (डा) इव-वस्त्र रखने की पेटी के समान, सुसंपरिग्गया-अच्छी प्रकार से उसकी रक्षा करेगा, रण-करंडगओ-हीरे मोती आदि रत्न रखने की तिजौरी के समान, विवसुसारक्खिया-अच्छी