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वर्ग-चतुर्थ ]
(२७६)
[निरयावलिका
भन्ते-भगवन् ! किस कारण से, बहुपुत्तिया देवी-उसे बहुपुत्रिका देवी, एवं वुच्चइ-इस नाम से पुकारा जाता है ? गोयमा! बहुपुत्तिया णं देवी-गौतम ! वह बहुपुत्रिका देवी, जाहे-जाहेजब-जब, सक्कस्स देविदस्स देवरणो-देवराज शक्र देवेन्द्र के, उवत्थाणियणं-पास जाती है, ताहेताहे-तब-तब वह, बहवे दारए दारियाए य-बहुत से लड़के लड़कियों, डिभए य डिभियाओ यछोटे-छोटे बच्चे बच्चियों की, विउब्वइ-विकुर्वणा करती है, विउवित्ता-विकुर्वणा करके, जेणेव सक्के देविदे देवराया-जहां देवताओं के राजा देवेन्द्र देव-सभा में बैठे होते हैं, तेणेव उवागच्छइवहीं पर आती है, उवागच्छित्ता - और वहां आकर, सक्कस्स देविदस्स देव-रणो-देवताओं के राजा देवेन्द्र शक के सपक्ष, दिव्वं देविडि-अपनी दिव्य समृद्धि, दिव्वं देवज्जुइ-दिव्य देव ज्योति को, दिव्व देवाणुभाग-दिव्य तेज को, उवदंसेइ-प्रदर्शित करती है, से तेणढणं-वह इसी कारण से, गोयमा !-हे गौतम, एवं बहुपुत्तिया देवी-इस प्रकार वह बहुपुत्रिका देवी कहलाती है ॥१६॥
मूलार्थ-तत्पश्चात् वह बहुपुत्रिका देवी अभी-अभी उत्पन्न होते ही पांचों पर्याप्तियां - भाषा पर्याप्ति, मन पर्याप्ति आदि प्राप्त कर लेती है । हे गौतम इस प्रकार बहुपुत्रिका देबी ने दिव्य देब-ऋद्धियां प्राप्त कर लीं। ___भगवन् ! किस कारण से वह देवी बहुपुत्रिका कहलाती है, गौतम ! वह बहुपुत्रिका देवी जब-जब देवताओं के राजा देवेन्द्र शक्र के पास जाती है, तब-तब वह बहुत से लड़के-लड़कियों तथा बच्चे बच्चियों की वि कुर्वणा करती है - अपनी देव-शक्ति से बच्चेबच्चियां बना लेती है, वि कुर्वणा करने के अनन्तर जहां देवताओं के राजा शक्रेन्द्र विराजमान होते हैं वहां आती है और देवराज शक्रेन्द्र के समक्ष अपनी दिव्य समृद्धि. दिव्य देव-ज्योति और अपना दिव्य तेज प्रदर्शित करती है। हे गौतम इसीलिये वह बहुपुत्रिका देवी कहलाती है ॥१६॥
टोका-प्रस्तुत सूत्र में आर्या भद्रा का नाम बहुपुत्रिका क्यों पड़ा ? इस विषय पर युक्तियुक्त प्रकाश डाला गया है कि वह जब भी शक्रन्द्र के सानिध्य में जाती थी तो अनेक बच्चों की विकुर्वणा करके उनको साथ लेकर जाती थी। अतः वह बहुपुत्रिका नाम से प्रसिद्ध हो गई।
देवलोक में उसने चार पल्योपम की आयु प्राप्त की थी ।।१६।।
मूल-बहुपत्तियाए णं भंते ! देवीए केवइयं कालं ठिइं पण्णता? गीयमा ! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता। बहुपुत्तिया णं भंते ! देवी