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निरयावलिका]
(२७८)
[वर्ग-चतुर्थ
रहे हैं, क्योंकि ज्ञानादि के पास रहते हुए भी वह उनके अनुकूल आचरण करने की उसकी सामर्थ्य को सन्तान-मोह ने नष्ट कर दिया था। वह इस अनाचरण की आलोचना किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हुई और सौधर्म देवलोक के बहुपुत्रिका विमान में उत्पन्न हुई।
साधु-जीवन स्वीकार करने का फल तो उसे मिलना ही था और वह देव-भव की प्राप्ति के रूप में उसे प्राप्त हुआ ॥१५।।
मूल-तएणं सा बहुपुत्तिया देवी अहुणोववन्नमित्ता समाणी पंचविहाए पज्जत्तीए जाव भासामणपज्जत्तीए । एवं खलु गोयमा ! बहुपुत्तियाए देवीए सा दिव्वा देविड्ढी जाव अभिसमण्णागया। से केणठेणं भंते ! एवं वच्चइ बहुपुत्तिया देवी देवी ? गोयमा बहुपत्तिया णं देवी जाहे जाहे सक्कस्स देविंदरस देवर ण्णो उवस्थाणियणं करेइ, ताहे ताहे बहवे दारए य दारियाए य डिभए य डिभियाओ य विउव्वइ, विउवित्ता जेणेव सक्के देविदे देवराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविड्ढि दिव्वं देवज्जुई दिव्वं देवाणुभागं उवदंसेइ, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ बहुपुत्तिया देवी ॥१६॥
छाया-ततः खलु सा बहुपुत्रिका देवी अधुनोपपन्नमात्रा सतो पञ्चविधया पर्याप्त्या यावद् भाषामनःपर्याप्त्या० । एवं खलु गौतम ! बहुपुत्रिकाया देव्या दिव्या देवद्धिः यावत् अभिसमन्वागता । अथ सा केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते बहुपुत्रिका देवी देवी ? गौतम ! बहुपत्रिका खल देवी यदा यदा शकस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य उपस्थानं (प्रत्यासत्तिगमन) करोति । तदा तदा बहून् दारकांश्च दारिकाश्च डिम्भांश्च डिम्भिकांश्च विकुरुते, विकृत्य यत्रव शक्को देवेन्द्रो देवराज-तत्रैव उपागच्छलि, उपागत्य शकस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य दिव्यां देवद्धि दिव्यं देवज्योतिः दिव्यं देवानुभागमुपदर्शयति । ततेनाऽर्थन गौतम ! एवमुच्यते बहुपुत्रिका देवी ॥१६।।
पदार्थान्वषः-तएणं-तदनन्तर, सा बहपत्रिका देवी-वह बहुपुत्रिका देवी, अहणोब बन्नमित्ता समाणी-वर्तमान में उत्पन्न होते ही, (उसने), पंचविहाए पज्जत्तीए-पांच प्रकार की पर्याप्तियों, भासामणपज्जत्तीए भाषा और मन: पर्याप्तियों आदि को प्राप्त कर लिया। एवं खलु गोयमा!-गौतम इस प्रकार से, बहुपुत्तियाए देवीए-बहुपुत्रिका देवी ने, · सा दिव्वा देविड्डी-वह दिव्य समृद्धि, जाव. अभिसमण्णागया-आदि उसे प्राप्त हुई थी। से केण?णं