________________
वर्ग-चतुर्थ ]
(२७७ )
[निरयावलिका
मासिकी, संलेहणाए-संलेखना द्वारा, अताणं-अपने आपको, झसित्ता-सेवित करके, तीसं भत्ताई-तीस भक्तों (आहारों) के, अणसणाए-अनशन द्वारा, छेदित्ता-छेदन करके (आहारों का त्याग करके, तस्स ठाणस्स अणालोयप्पडिक्कंत-उस अनाचार की आलोचना न करके. काल मासे कालं किच्चा मत्य-काल आने पर मर कर. सोहम्मे कप्पे-सौधर्म कल्प नामक देवलोक के, बहपत्तिया विमाणे-बहपत्रिका नामक विमान की. उववायसभाए-उपपात सभा में. देवसयणिज्जसि-देव-शय्या पर, देवदूसंतरियाए-देव दूष्य वस्त्रों से आच्छादित, अगुलस्सअसंखेज्जमागमेताए-अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र की, ओगाहणाए-अवगाहना से (शरीरप्रमाण से), बहुपुत्तियदेवित्ताए-बहुपुत्रिका देवी के रूप में, उववण्णा-उत्पन्न हुई ॥१५॥
मूलार्थ -तदनन्तर वह आर्या सुभद्रा साधु के द्वारा आचरणीय गुणों से दूर होकर साधु-समाचारी के पालन में खेदयुक्त हुई अवसन्न विहारिणी हो गई, उत्तर गुणों का पालन न करने के कारण संज्वलन कषायों का उदय हो जाने से दूषित आचरण वाली बन कर-समाचारी के पालन में शिथिल होकर विचरने लगी। वह गृहस्थों के बाल-प्रेम के सम्बन्धों में आसक्त होकर शिथिलाचारिणी बन कर अपने अभिप्राय से कल्पित धर्म-मार्ग पर स्वच्छन्दता पूर्वक विचरने लगी । इस प्रकार अनेक वर्षों तक तथाकथित श्रमणीचर्या का पालन करती हुई अर्धमासिकी सलेखना द्वारा अपनी आत्मा को सेवित करके तोस भक्तों (पन्द्रह दिन तक आहार का) त्याग करके उन अनाचारणीय कार्यों के आचरण की आलोचना किये बिना ही, मृत्यु का अवसर आने पर मर कर सौधर्म कल्प नामक देवलोक के बहुपुत्रिका नामक विमान की उपपात सभा में देवदूष्य वस्त्रों से आच्छादित अंगुल के असख्थातवें भाग की अवगाहना से (शरीर-प्रमाण से) वह बहुपुत्रिका देवी के रूप में उत्पन्न हुई ॥१५॥
टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि आर्या सुभद्रा सुव्रता आर्या से अलग होकर वह अपनी इच्छा के अनुसार विचरण करने लगी। उसकी स्वछन्दता की अभिव्यक्ति के लिये सूत्रकार ने पांच वाक्यों का प्रयोग किया है-पासत्था पासस्थविहारी, ओसण्णा ओसण्णविहारी, कुसीला कुसीलविहारी, संसत्ता संसत्तविहारी, अहाच्छन्दा अहाच्छन्दविहारी- अर्थात् शिथिलाचार में प्रवृत्त, संयम-पालन की उपेक्षा करती हुई, ज्ञानादि साधनों की विराधिका होकर केवल अपने अनुकूल अर्थात् जैसा चाहती थी वैसा ही आचरण करने लगी। पासत्था शब्द का अर्थ है-जातादिना पाते. तिष्ठति इति पार्श्वस्था। इसी प्रकार अन्य पांच पद भी उसकी स्वच्छन्दता की अभिव्यक्ति कर