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निरयावलिका)
(२७६)
विग-चतुर्थ
पुव्विं च समणीओ निग्गंथनीओ आढेइ परिजाणेति इयाणि नो आढाइंति नो परिजाणति-- अर्थात् पहले तो ये श्रमणियां-निर्ग्रन्थिनियां मेरा मान-सम्मान सत्कार करती थीं अब मुझे कोई मान-सत्कार नहीं देतीं ।।१४।।
मूल-तएणं सा सुभद्दा अज्जा पासत्था पासस्थविहारी एवं ओसण्णा० ओसणण्णविहारी कुसीला कुसोलविहारी संसत्ता संसत्तविहारी अहाच्छंदा अहाच्छंद विहारी बहूई वासाइं सामन्नपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्ध मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता तीसं भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयप्पडिक्कंत, कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे बहुपुत्तियाविमाणे उववायसभाए देवसयणिज्जसि देवदूसंतरियाए अंगुलस्स असंखेज्जमागमेत्ताए ओगाहणाए बहुपुत्तिय-देवित्ताए उववण्णा ॥१५॥
छाया-ततः खलु सा सुभद्रा आर्या पार्श्वस्था पार्श्वस्थविहारिणी एवमवसन्ना अवसन्नविहारिणी कुशीला कुशीलविहारिणी संसक्ता संसक्तविहारिणी यथाच्छन्दा यथाच्छन्दविहारिणी बहूनि वर्षाणि श्रामण्यपर्यायं पालयति, पालयित्वा अर्द्धमासिक्या संलेखनया आत्मनं जोषयित्वा विशद् भक्तानि अनशनेन छित्त्वा तस्य स्थानस्य अनालोचिताऽप्रतिकान्ता कालमासे कालं कृत्वा सौधर्मे कल्पे बहुपुत्रिकाविमाने उपपातसभायां देवशयनीये देवदूष्यान्तरिता अंगुलस्य असंख्येयभागमात्रया अवगाहनया बहुपुत्रिकादेवीतया उपपन्ना :।१५॥
पदार्थान्वयः-तएणं-तदनन्तर, सा सुभद्दा अज्जा-वह आर्या सुभद्रा, . पासत्था पासविहारी–साधु के गुणों से दूर होकर विचरतो है, एवं ओसण्णा०–साधु-समाचारी के पालन में खिन्न (अर्थात् साधु समाचारी से उदासीन हो कर), ओसण्ण विहारी-अवसन्न विहारिणी हो गई, कुसीला कुसीलविहारी-उत्तर गुणों का पालन न करने के कारण संज्वलन कषायों का उदय हो जाने से दूषित आचरण वाली, समाचारी पालन में शिथिल होकर विचरने लगी, संसत्ता संसत्तविहारी-गृहस्थों के बाल-प्रेम सम्बन्धों में आसक्त होकर शिथिालाचारिणी होकर विचरने लगी ; अहाच्छंबा-अपने अभिप्राय से कल्पित धर्म-मार्ग पर, अहाच्छंदविहारी-स्वच्छंद होकर चलने लगी, एवं बहुवासाइं-इस प्रकार अनेक वर्षों तक, सामन्नपरियागं-श्रमणचर्या का, पाउणइ पालन करती है, पाउणित्ता-और उस चर्या का पालन करके, अद्धमासियाए-अर्ध