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________________ सम्पादक मण्डल परिचय निरयावलिका जैन वाङ्मय के उपांग साहित्य में निरयावलिका का आठवां महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका दूसरा "नाम कप्पिया व कल्पिका" भी है। पूर्व में उपांग पांच उपांगों का संग्रह था जो कि 'निरयावलियाओ' कहलाता है । वे पांच उपांग हैं १. निरयावलिया या कप्पिया २. कप्पडिसिया (कल्पावतंसिका) . ३. पुफिया (पुष्पिका) .४. पुफ्फचूलिया (पुष्पचूलिका) तथा ५. वहिदहा (वृष्णिदशा) कालान्तर में उपांग संख्या को द्वादश अंग ग्रन्थों (आगमों) के तुल्य बनाने के लिये उपर्युक्त श्रुतग्रन्थों को पृथक्-पृथक् उपांग ग्रन्थों के रूप में मान्यता दे दी गई। . आज निरयावलिका का अपना पूर्ण स्वतन्त्र अस्तित्व है। "निरयावलिका" पद का संस्कृत प्रतिरूप नरकावलिका बनता है जिसका अर्थ है-नरकों की पंक्तियां । ग्रन्थ के प्रारम्भ में जैसा कि वर्णन प्राप्त होता है कि गणधर आर्य सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य आर्य जम्बू के प्रश्नों के समाधान स्वरूप प्राकृत "निरयावलिया" का उपदेश देते हुए लमझाते हैं कि अच्छे कर्मों का परिणाम अच्छा अर्थात् स्वर्ग-प्राप्ति और बुरे कर्मों का फल बुरा-असुरगति व नरक-गति की उपलब्धि है। अर्द्धमागधी प्राकृत भाषा में निबद्ध प्राकृत निरयावलिका कथा-ग्रन्थ में दस अध्ययन हैं जिनमें भगवान महावीर स्वामी के समकालीन मगध-सम्राट श्रेणिक-विम्बसार के पुत्र, जिन्हें इतिहास प्रशोकचन्द्र, विदेहपुत्र, वज्जिविदेह तथा अजातशत्रु भी बतलाता है, ऐसे चम्पानरेश कूणिक के काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह; रामकण्ह, पिउसेणकण्ह और महासेणकण्ह, ये दस भाई वैशाली नरेश चेट क के द्वारा युद्ध में मार डाले गए थे। इन दशों राजपुत्रों ने युद्ध में लड़ते हुए अशुभ भावों के कारण नरकगति पाई थी। यह निरयावलिका का मावृत्त निःसन्देह अर्थानुकूल परिलक्षित होता है। इस तरह निरयावलिका ज्ञाताधर्मकथा, पासकदशा, अन्तकृद्दशा और विपाकसूत्र आदि आगमकालीन कथा-साहित्य का मनोज्ञ शिक्षाप्रद (पच्चीस)
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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