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________________ अनूठा ग्रन्थ है । शेष उपांगों का सारांश प्रस्तावना में सम्पादक दे चुके हैं इन पांचों उपांगों में तीर्थकर महावीर भगवान श्री पार्श्वनाथ; भगवान श्री अरिष्टनेमी के समय के आराधकों का पुण्यमय वर्णन हैआचार्य श्री आत्माराम जी महाराज ___मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है कि उक्त निरयावलिका सूत्र अपने संशोधित मूल स्वरूप के साथ संस्कृत-छाया; टोका, हिन्दी अनुवाद, खोजपूर्ण विस्तृत भूमिका तथा पाद-टिप्पण सहित २५वीं महावीर निर्वाण शताब्दी संयोजिका समिति, मालेरकोटला (पंजाब) द्वारा प्रकाशित हो रहा है। प्रस्तुत सूत्र पर भारत में बहुत ही कम कार्य हुआ है। श्वेताम्बर स्थानक वासी जैन श्रमण संघ के आद्य आचार्य पूज्य श्री आत्मा राम जी महाराज ने इस कमो को अाज से ४७ वर्ष पूर्व हो पहचान लिया था। उन्होंने २० आगमों पर हिन्दी टोकायें लिखीं। जिनमें से आचारांग, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, स्थानांग, अन्तकृद्दशांग के अनुवाद बहुत प्रसिद्ध हैं । समस्त जैन जंगत द्वारा मान्य तत्वार्थ सूत्र पर उनके शोध-कार्य की प्रशंसा विश्व स्तर पर हुई । आचार्य श्री का अप्रकाशित आगमों में से यही उपांग अप्रकाशित था जिसे पच्चीसवीं महावीर निर्वाण शताब्दी संयोजिका समिति पंजाब ने साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज की प्रेरणा से प्रकाशित करने का निर्णय किया है। इस उपांग पर आचार्य श्री ने संस्कृत-छाया, पदार्थान्वय, मूलार्थ औ हिन्दी टीका लिखी है । इस उपांग की हस्तलिखित प्रति आचार्य श्री के शिष्य पूज्य श्री रत्न मुनि जी महाराज के पास सुरक्षित थी। श्री रत्न मुनि जी महाराज स्वयं प्राकृत, संस्कृत, पाली, उर्दू, फारसी, पंजाबी, गुजराती, राजस्थानी के विद्वान संत हैं। आप हर समय स्वाध्याय मौन एवं तप में लीन रहते हैं । साध्वी जी की प्रार्थना पर आपने यह इस ग्रन्थ की पाण्डुलिपि समिति को प्रदान कर अनुग्रहीत किया है। साध्वी श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज उक्त ग्रन्थ को प्रमुख सम्पादिका हैं-महाश्रमणी जिनशासन - प्रभाविका, जैन - ज्योति, समाज-सुधारिका, बहुभाषाविज्ञ, उपप्रवर्तिनी साध्वा-रत्ना श्री स्वर्णकान्ता. जी महाराज। आप प्रतिभा-सम्पन्न, विदुषोरत्ना होने के साथ हो साथ उग्रतपस्विनी एवं ध्यान-साधिका भी हैं। गुरुणी जी महाराज की ओजस्वी वाणी माधुर्यपूर्ण सशक्त एवं महान् प्रेरणास्पद है । इसका प्रमाण है-हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश के गांवों में परिभ्रमण कर भगवान महावीर स्वामी के अनेकान्तमय अहिंसा और अपरिग्रह जैसे गम्भीर सिद्धान्तों पर तथ्यपूर्ण मार्मिक व्याख्यानों, प्रवचनों से लाभान्वित जैन जैनेतर हजारों लोगों का अहिंसा-पथ पर चलने का प्रणिधान करना, निश्चय ही यह सब गुरुणो जी महाराज के बहु-आयामी व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करता है। उत्तरी भारत में विशेषकर पंजाब के लिये आपने जो सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया है, वह है जैन साहित्य को पंजाबो भाषा में रूपान्तरित और अनवादित करवाना। गरुणो जी की प्रेरण से जैन तत्वावधान एवं इतिहास से सम्बद्ध लगभग ४० ग्रंथ पंजाबी भाषा में मूल एवं पंजाबी [छब्बीस]
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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