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________________ वर्ग-चतुर्थ ] (२७१) [निरयावलिका - सूत्रकर्ता ने “गवेसई" पद से सिद्ध किया है कि वह साध्वो-जीवन के विपरीत क्रिय ये अकेली करतो थो। फासुयंगण - पद से यह बताया गया है कि वह बालक बालिकाओं को प्रासुक जल से स्नान कराती थी। पुप्फाइं ओमुई–सूत्र से पुष्ट होता है कि वह सचित पुष्पों से नहीं, बल्कि कागज के फूलों से बच्चों का मनोरंजन करती थी। ऐसे वनावटी पुष्प सुगन्धित पदार्थ लगा कर तैयार किये जाते थे। क्योंकि ओमई-पद इसी ओर संकेत करता है । करतलपुडेण गहाय हलउलमाणी-पद से माता और पूत्र का स्वाभाविक स्नेह सिद्ध किया गया है। प्रस्तुत सूत्र में सभद्रा आर्या की मनःस्थिति का स्पष्ट चित्रण किया गया है कि एक वांझ स्त्री बच्चे के लिए किस तरह लालायित रहती है ? साध्वी बनकर भी वह ममता नहीं त्याग सकी। इस सत्र के माध्यम से साध्वियों को राग-द्वेष से बचे रहने का निर्देश किया गया है ॥१२॥ उत्थानिका :-जब सुभद्रा आर्या इस प्रकार की क्रियायें करने लग गई तो अन्य साध्वियों ने - सुभद्रा आर्या को क्या कहा? सुभद्रा ने जो किया उसका वर्णन प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने किया है :मूल-तएणं ताओ सुव्वयाओ अज्जाओ सुभद्दे अज्जं एवं क्यासीअम्हे णं देवाणु प्पिए ! समणीओ निग्गंथीओ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभयारिणीओ नो खलु अम्हं कप्पइ जातककम्म करित्तए, तुमं च णं देवाणुप्पिया ! बहुजणस्स चेडरूवेस मुच्छिया जाव अज्झोववन्ना जाव नत्तिपिवासं वा पच्चणुब्भवमाणो विहरसि, तं णं तुमं देवाणुप्पिया एयस्स ठाणस्स आलोएहि जाव पायच्छित्तं पडिवज्जाहि। तएणं सा सुभद्दा अज्जा सुव्वयाणं अज्जाणं एयमद्वं नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणी अपरिजाणमाणी विहरइ ॥१३॥ ___ छाया- ततः खलु ता सुव ता आर्या सुभद्रामार्यामेवमवादीत्-वयं खलु देवानुप्रिये ! श्रमण्यो निग्रन्थ्यः इर्यासमिता यावद् गुप्तब्रह्मचारिण्यो नो खलु अस्माकं कल्पते जातकर्म कर्तुम्, त्वं च खलु देवानुप्रिये ! बहुजनस्य चेटरूपेषु मूच्छिता यावत् अध्युपपन्ना अभ्यञ्जनं च यावत् नप्त्रीविपासा वा प्रत्यनुभवन्ती विहरसि, तत् खलु देवानुप्रिये ! एतस्य स्थानस्य आलोचय यावत् प्रायश्चित्तं प्रतिपद्यस्व । ततः खलु सा सुभद्रा आर्या सुव्रतानामार्याणामेतमर्थ नो आद्रियते मो परिजानाति, अनाद्रियमाणा नपरिजानन्ती विहरति ।।१३।।
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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