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________________ वर्ग-चतुर्थ ] ( २६७ ) [निरयावलिका हट्ठा--प्रसन्न हुई तथा, सयमेव -स्वयं ही, आभरणमल्लालंकारं ओमयइ-आभरणों अलंकारों का त्याग करती है, ओमुइत्ता-और त्याग कर, सयमेव - स्वयं ही, पचमुठ्ठियं लोयं करेइ-पांच मुष्टि लोच करतो है, करित्ता-लोच करने के पश्चात्, जेणेव-जहां पर, सव्वयाओ अज्जाओ-सुव्रता आर्या थी, तेणेव उवागच्छइ-वहीं आती है, उवागच्छित्ता-वहां आकर, सुब्वयाओ अज्जाओसुव्रता आर्या को, तिक्खतो-तीन बार, आयाहिणपयाहिणेणं-प्रदक्षिणा करती हुई, वंदइ नमसइ-वन्दना-नमस्कार करती है, वदित्ता नसित्ता-वन्दन नमस्कार करने के पश्चात, एवं बयासी-इस प्रकार कहने लगो, आलित्तेणं भंते-हे गुरुणी जी! यह संसार जन्म-मरण की आग में जल रहा है, जहा-जैसे, देवाणंदा-देवानंदा ब्राह्मणी (भगवती सूत्र के अनुसार वर्णन जानना चाहिये), तहा-वैसे ही, पव्वइया-प्रवज्या ग्रहण करती है, अर्थात् साध्वी बन गई, जाव-यावत्, अज्जा-आर्या, जाया-बन गई, जाव-यावत्, गुत्त बंभयारिणी-गप्त ब्रह्मचारिणी हो गई ॥११॥ ___मूलार्थ तत्पश्चात् वह सुभद्रा सार्थवाही साध्वी सुव्रता के ऐसा कहने पर प्रसन्न हुई जौर उसने स्वयं ही गृहस्थ वेश के वस्त्रों अलंकारों को उतार दिया। अपने हाथों से स्वयेव ही पंचमुष्टि लोच किया । लोच करने के पश्चात् जहां सुव्रता आर्या थी वहां आती है आकर सुव्रता आर्या की तीन बार प्रदक्षिणा करके वन्दना नमस्कार करती है। और फिर इस प्रकार कहने लगी :संसार में आग लगी है संसार दु:खों की आग से जल रहा है" जैसे देवानंदा ब्राह्मणी ने प्रवज्या ग्रहण की थी वैसे उस सुभद्रा सार्थवाही ने भी दीक्षा ग्रहण करना । वह भी यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी हो गई ॥११॥ टीका-प्रस्तुत सूत्र में सुभद्रा सार्थवाही द्वारा दीक्षा लेने का वर्णन है। यह वर्णन भगवती सूत्र में वर्णित देवानंद ब्राह्मणी की तरह है । इस सूत्र में सुभद्रा की वैराग्य भावना का दिग्दर्शन कराया गया है। साथ में बताया गया है कि सुभद्रा ने स्वयं ही पंचमुष्टि लोच किया। फिर उसने अपनी गुरुणी आर्या सुव्रता से पंच महाव्रत धारण किये ॥११॥ उत्थानिकाः-दीक्षा ग्रहण करने के बाद क्या हुआ ? अब इस का वर्णन सूत्रकार ने किया है । ___मूल-तएणं सा सुभद्दा अज्जा अन्नया कयाइ बहुजणस्स चेडरूवे संमृच्छिया जाव अज्झोववण्णा अभंगणं च उव्वट्टणं फासुयपाणं च अलत्तगं च कंकणाणि य अंजणं च वण्णगं च चुण्णगं च खेलगाणि य
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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