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निरयावसिका]
(२६४)
[वग-चतुर्थ
टोका-प्रस्तुत सूत्र में सुभद्रा सार्थवाही का अपने पति से वार्तालाप व दीक्षा प्रसंग का विस्तत वर्णन है। पति ने दीक्षा की आज्ञा प्रदान कर दी। उस समय की परम्परा अनसार भद्र सार्थवाह ने अपने रिश्तेदारों व मित्रों को इक्ट्ठा किया और उन्हें भोजन करवाया। फिर उनका सन्मान सत्कार किया। अपनी पत्नी सुभद्रा को स्नान करवाया, वस्त्र आभूषणों से उसे अलंकृत किया। फिर एक हजार मनुष्यों के उठाने योग्य सुन्दर शिविका पर सुभद्रा सवार हुई। वाराणसी नगरी के बीचों बीच बड़े ठाट के साथ होती हुई साध्वी सुव्रता के उपाश्रय के समीप पहुंची। पालकी को नीचे रखा गया और वह स्वयं नीचे उतर गई।६।
तएणं भद्दे सत्थवाहे सुभदं सत्थवाहिं पुरओ काउं जेणेव सुव्वया अज्जा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सव्वयाओ अज्जाओ वंदइ नमसइ, वंदित्ता एवं वयासो-एवं खलु देवाणुप्पिया ! सुभदा सत्थ बाही ममं भारिया इट्ठा कंता जाव मा णं वाइया पित्तिया सिभिया सन्निवाइया विविहा रोगातका फुसंतु, एसणं देवाणुप्पिया ! संसारभउविग्गा, भीया जम्मणमरणाणं, देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता जाव पव्वयाइ, तं एवं अहं देवाणुप्पियाणं सीसिणीभिवखं दलयाणि, पडिक्छंत णं देवणुप्पिया ! सोसिणीभिक्खं । अहासहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं ।१०।
ततः खल भद्रः सार्थवाहः सुभद्रां सार्थवाही पुरतः कृत्वा यत्रैव सुव्रता आर्यः तत्रैवोपागच्छति, उपागम्य सुव्रता आर्या वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा एवमवादोत्-एवं खलु देवानप्रियाः। सुभद्रा सार्थवाही मम भार्या इष्टा कान्ता यावत मा खल वातिकाः पत्तिकाः श्लैष्मिकाः सानिपातिका विविधाः रोगातङ्काः स्पृशन्तु, एषा खल देवानुप्रिया ! संसारभयोद्विग्ना, भीता जन्ममरणाभ्यां. देवानुप्रियाणामन्तिके मुण्डा मत्वा यावत् प्रव्रजति ! तद् एतामहं देवानुप्रियाभ्यो ददामि, प्रतीच्छन्तु रू लु देवानुप्रिया: ! शिष्याभिक्षाम् । यथासुखं देवानुप्रियाः मा प्रतिबन्धम् ।।१०।।
पदार्थान्वयः-तएणं-तत्पश्चात्, भद्दे सत्थवाहे-भद्र सार्थवाह ने, सुभई सस्थवाहिभद्रा सार्थवाही को, पुरओ काउं-आगे किया, जेणेव-जहां, सुब्बया अज्ज-सुव्रता आर्या थी, तेणेव-वहां पर, उवागच्छइ उवागच्छित्ता-आए और आकर, सुम्वयाओ अज्जाओ-सुव्रता आर्या को. बंबइ नमंसह-वन्दन नमस्कार किया, वंदित्ता नमंसित्ता-वन्दन नमस्कार करने के पश्चात् एवं वयासो-इस प्रकार कहा, एग खल-इस प्रकार निश्चय ही, देवाणुप्पिया-हे देवानुप्रिय, सुभद्दा सत्थवाही-यह सुभद्रा सार्थवाही, ममं भारिया-मेरी पत्नी है मुझे, इट्टा-इष्ट है,