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वर्ग - चतुर्थ |
( २६१ )
[ निरयालिका
वयासि - इच्छामि णं देवाणुप्पिया ! तुभई अब्भणुन्नाया समाणी जाव इत्तए ! तणं से भद्दे सत्यवा हे जाहे नो संचाएइ बहूहिं आघायनाहिय एवं पन्नवणाय सन्नवणाहिय विष्णवणाहिय आघवित्तए वा जाव विणवित्तएका ताहे अकामए चेव सुभद्दाए निक्खमणं अणुमणित्था ॥८॥
छाया - ततः खलु स भद्रः सार्थवाहः सुभद्रां सार्थवाहीं एवमवादीत् - मा खल त्वं देवानप्रिये ! इदानीं मुण्डा यावत् प्रव्रज । भङ्क्ष्व तावद् देवानुप्रिये ! मया सार्द्धं विपुलान् भोगभोगान् ततः पश्चात् भुक्तभोगिनी (सती) सुव्रतानामार्याणामन्तिके यावत् प्रव्रज । ततः खलु सुभद्रा सार्थवाही भद्रस्य एतमर्थ नो आद्रियते नो परिजानाति द्वितीयमपि तृतीयमपि भद्रा सार्थवाही एवमवादोत्इच्छामि खलु देवाप्रियाः ! युष्माभिरभ्यनुज्ञाता सती यावत् प्रव्रजितुम् । ततः खलु स भद्रः सार्थवाहो या नो शक्नोति - बह्वीभिराख्यापनाभिश्च एवं प्रज्ञापनाभिश्च संज्ञापनाभिश्च, विज्ञापनाभिश्च, आख्यायितुम् वा, यावत् विज्ञापयितुं वा तदा अकामतश्चैव सुभद्रा निष्क्रमणमन्वमन्यत ||८||
पदार्थान्वयः - तएणं - तत्पश्चात्, से भद्दे - वह भद्र, सत्यवाहे - सार्थवाह, सुभद्दं सत्थवाहीसुभद्रा सार्थवाही से एवं - इस प्रकार, वयासी – कहने लगा, मा णं तुभं देवापिया हे देवानुप्रिये तुम मत ग्रहण करो, इदाणि मुंडा - तुम मुण्डित, जाव - यावत् पव्वयाहि- प्रवजित होना, जाहिता - तब तक देवाणुप्पिए - देवानुप्रिये, मए - मेरे, सद्धि-साथ, बिउलाई भोगभोगाई - विपुल भोग उपभोग कर, ततो पच्छा - तत्पश्चात् भुत्तभोइ— भुक्त भोगी होकर, सुब्वयाणं अज्जाणं जाव पश्वयाहि-सुव्रता आर्या के पास जाकर प्रवज्या ग्रहण कर लेना, तरणं तत्पश्चात्; 'सुभद्दा सत्यबाही - सुभद्रा सार्थवाही, भद्दस्त - भद्र की, एयमट्ठ - इस बात को सुनकर, नो आढाइ – उसे न आदर दिया, नो परिजाणइ-न ही अच्छा समझा, दोच्चंपि - दो बार, तच्वंपि -- तीन बार, भद्दा सत्यवाही- भद्रा सार्थवाही, एवं वयासी - इस प्रकार कहने लगी, इच्छामि गं देवापिया - हे देवानुप्रिय मेरी इच्छा है कि, - आप से, अब्भणुष्णाया समाणी - आज्ञा पाकर, जाव - यावत् पव्वइत्तए - दीक्षा स्वीकार करूं, तरणं - तत्पश्चात् से भद्दे सत्यवाहे - वह भद्र सार्थवाह, जाहे - जब, नो संचाएइ – असमर्थ रहा, बहूह - बहुत से, आघयणाहियसामान्य वचनों से, एवं प्रौर, पन्मवणाय - विशेष वचनों से, सन्नवणाहिय - प्रलोभनों से, विष्णवगाहिय - प्रेमपूर्वक वचनों से, आघवित्तए वा जाव विष्णवित्तए वा - प्रलोभन देने से, प्रेम पूर्वक समझाने से, ताहे- तब, अकामए चेव-इच्छा न होने पर भी, सुभद्दाए निक्खमणं उसने सुभद्रा को दीक्षित होने की कर दी, अणुमण्णित्था - भद्रासार्थवाह ने अपनी पत्नी सुभद्रा सार्थवाही को आज्ञा प्रदान कर दी ||८||
तुम्मेहि
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