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________________ वर्ग-चतुर्थ] ( २५६) [निरयावलिका करने के लिये, अम्हे णं-हम लोग, देवाणुप्पिये-हे देवानुप्रिये, णवरं-हां इतना कह सकती हैं, तव-तुम्हारे लिये, विचित्तं केवलिपण्णत्तं धम्म-अपूर्व केवली प्ररूपित धर्म को, परिकहेमोकह सुन सकती हैं ।।५।। मूलार्थ- तत्पश्चात् वे साध्वियां सुभद्रा सार्थवाहो से इस प्रकार कहने लगी हे देवानुप्रिये ! हम श्रमणी हैं, निर्ग्रन्थनी हैं. ईर्या आदि समितियां यावत् तीन गप्तियों (मन, वचन, काया) द्वारा ब्रह्मचर्य आदि पांच महाव्रतों का पालन करती हैं, हमें इस प्रकार का कथन कानों से सुनना भी नहीं कल्पता, अर्थात् हमारे लिए यह बात सुनना पाप है, फिर ऐसी बात का कहना व करना तो एक तरफ रहा । हे देवानुप्रिये ! हम आपको केवली प्ररूपित धर्म जो कि अपूर्व है, सुना सकतो हैं ॥५॥ टीका-प्रस्तुत सूत्रों में बताया गया है कि जब साध्वियों ने भद्रा सेठानी की बातें सु। तो उन्होंने जैन धर्म के साधु-जीवन का सार उसे समझाया कि जैन साधु साध्वी पांच महाब्रत, पांच समितियों व तीन गुप्तियों का कठोरता से पालन करते हैं। उन्हें इस तरह की सांसारिक बातों से कुछ लेना-देना नहीं। वे तो वीतराग सर्वज्ञ केवलियों द्वारा प्ररूपित शाश्वत धर्म सुना, सकती हैं, जिसे सुनकर इहलोक और परलोक में कल्याण होता है। साध्वियों के धर्म-उपदेश से सुभद्रा, उन साध्वियों के पास जीव अजीव की ज्ञाता, बारह व्रती श्राविका बन गई। सुभद्रा को साध्वियों ने कहा शुभ कार्य में प्रमाद ना करो। एक रात्रि कुटुम्ब जागरण के, समय उसके मन में यह विचार पाया कि मुझे ।।५।। मूल--तएणं सुभद्दा सत्थवाही तासि अज्जणं अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा ताओ अज्जाओ निखुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमं. सित्ता एवं वयासी-सहहामिणं अज्जाओ ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामिणं रोएमिणं अज्जाओ ! निग्गंथं पावयणं ! एवमेयं, तहमेयं, अवितहमेयं, जाव सावगधम्म पडिवज्जए । महासुहं देवाणुप्पिए ! मा पडिबंधं करेह । तएणं सा सभहा सत्थवाही तासि अज्जाणं अंतिए जाव पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता ताओ अज्जाओ वंदइ नमसइ पडिविसज्जइ ॥६॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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