SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ग-चतुर्थ ] ........ ..........( २५४) [निरयावलिशा के उच्च नीच-मध्यम कुलों में गवेषणा करता हुआ भिक्षा के लिये भद्र सार्थवाह के घर पहुंचा। .. - तत्पश्चात्' सुभद्रा 'सार्थवाही उन साध्वियों को देखकर बहुत प्रसन्न हुई। अपना आसन छोड़ कर वह उन्हें लेने के लिये सात-आठ कदम आगे आई। वन्दन नमस्कार किया वन्दन नमस्कार करने के पश्चात् विपुल (लेने योग्य विशाल) अशन-पान-खादिमस्वादिम चारों प्रकार का भोजन देकर लाभान्वित हुई। भोजन देने के पश्चात् वह साध्वियों से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी । हे आर्याओ ! मैं भद्र सार्थवाह के साथ विपुल भोग उपभोग भोगती हुई आनन्द से जीवन-यापन कर रही हूं किन्तु मेरे एक भी बालक या बालिका उत्पन्न नहीं हुआ। वे माताएं धन्य हैं जो किसी बच्चे को उत्पन्न करती हैं, हे आर्याओ ! आप तो बहुत ज्ञान बाली. हैं; आपने बहुत कुछ पढ़ा लिखा है , बहुत से ग्राम, नगर, आकर व सन्निवेश घूमे हैं; बहुत से राजा, तलवर सेठ और सार्थ, वाहों के यहां (घरों में) आप आती-जाती रहती हैं। क्या कोई ऐसी विद्या है ? कोई : मात्र, प्रयोग है ? वमन, विरेचन या बस्तिकर्म आदि क्रिया है ? औषध-भेषज उपलब्ध है, जिसके प्रयोग से मैं बालक या बालिका को जन्म देने के योग्य हो सकं ॥४॥ टीका-प्रस्तुत सूत्रों में माता की सन्तान के प्रति सहज चिन्ता का मनोवैज्ञानिक चित्रण" किया गया है। साथ में साध्वी सुव्रता के वाराणसी में आगमन का वर्णन है, साध्वी सुव्रता साधुजीधन के पांचा महानतों से युक्त है, पाँच समितियों व तीन गुसस्तयों से युक्त है वह स्वामी की आज्ञा से धार्मिक उपकरण लेकर, ठहरती हैं। उन ,साध्वियों का विशाल शिष्या-परिवार है, साध्वी सुव्रता के ज्ञान व श्रुत की चर्चा देश-देशान्तरों तक फैली हुई है। सम्भवत: इसी कारण उनका विहार क्षेत्र भी विशाल है। उन साध्वियों में से दो साध्वियां अपनी गुरुणी की आज्ञा से वाराणसी के उच्च-नीच 'व मध्यम कुलों आदि अज्ञात कुलों मैंभिक्षा के लिए घूम रही है, क्योंकि साधु हर घर से भिक्षा नहीं ले सकता। उसे भिक्षा सभी दोष काल कर लेती है।... TFउन साध्वियों से वह सुभद्रा अपनी मनो-धा वर्णन करती है कि कोई विद्या, मंत्र, यंत्र; औषधि भस्म ऐसी बताओ जिससे मेरे भी संतान उत्पन्न हो जाए। संतान न होने के कारण सुभद्रा स्वयं को हीन मान रही है । इसी हीन भावना के आधीन होकर उसने अपनी सारी जीवन-गाथा साध्वियों के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट की लगता, है सुभद्रा हर समय संतान की चिंता में डूबी रहती थी। 'उसामा ससा दादा- ह . . . .
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy