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दो शब्द जैन शास्त्रों का वर्गीकरण अंगों और उपांगों के रूप में किया गया है । आजकल बारह उपांग माने जाते हैं, पर निरयावलिका सूत्र के एक वाक्य के आधार पर ऐसा लगता है कि पुरानी जैन परम्परा के अनुसार उपांग पांच ही थे। इस सूत्र के अतिरिक्त कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा को भी उपांग की संज्ञा दी जाती थी। कारण यह है कि विषय-वस्तु और पात्रों की दृष्टि से यह ग्रन्थ अन्तकृद्दशांग (८वां अंग), अनुत्तरोपपातिकदशा (हवां अंग) तथा विपाकश्रुत (११वां अंग).से काफी सम्बन्धित है और इन अंगों की सामग्री ये पांचों उपांग पूरी करते हैं । उनका संगठन भी मिलता-जुलता है। वष्णिदशा-उपांग के अतिरिक्त इन सब उपांगों के दस-दस अध्ययन हैं । नियम यह है कि प्रथम अध्याय को कथा सम्पूर्ण रूप से दी गयी है। दूसरे अध्ययनों की कथाएं मलग-अलग नहीं हैं । पावों और स्थानों के नाम ही बदले गये हैं और इन कथाओं के केबल संकेत मात्र दे दिये गये हैं।
उपरोक्त उपांग की कथाओं में महावीर स्वामी, पार्श्व स्वामी या अरिष्टनेमि स्वामी के द्वारा विविध पात्रों के पूर्वभव या भविष्य जन्म बताए गए हैं। अपने-अपने कर्मों के कारण निरयाबलिका सूत्र के दस राजकुमार नरक गति में और कल्पावतंसिका के दस कुमार कल्प (स्वर्ग) में पैदा होते हैं। पुष्पिका में और पुष्पचूलिका में देवों और देवियों की ऋद्धि की उत्पत्ति स्पष्ट करने के लिए उनके पूर्वभवों की चर्चा की गई है।
निरयावलिका सूत्र की कथा-वस्तु जैन साहित्य में विख्यात है। कूणिक कुमार का अपने पिता श्रेणिक राजा से द्वेष, वैशाली राजा के साथ कूणिक का युद्ध और उसकी विजय इत्यादि घटनाओं का जो उल्लेख किया गया है, वह आवश्यकचूणि, हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र जादि ग्रन्थों में भी आता है। बौद्ध ग्रन्थों में भी इन कथानकों से मिलती-जुलली कथायें हैं।
ऐतिहासिक कथाओं के अतिरिक्त इन उपांगों में पात्रों की हृदय-स्पर्शी जीवन-कथाएं भी प्राप्त होती हैं जैसे निरयावलिका सूत्र में युद्ध में लगे हुए पुत्र की माता की चिन्ता और देहान्त के बाद उनके गम्भीर शोक को हम अनुभव कर सकते हैं। बहुपुत्तिय देव होने से पहले सुभद्रा का जीवन दुःख पूर्ण है [देखिये पुष्पिका ३ में] । । वास्तव में इन पांच उपांगों की कथायें श्रावक-श्राविकाओं के लिए विशेष रूप से रोचक तथा वैराग्य-वर्धक धर्म-कथायें हैं। जैन संघ को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि पश्चिम योरुप के विद्वान शुरू से ही निरयावलिका
[तेईस]