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________________ रत्न श्री स्वर्णकान्ता जी महाराज ने अपनी लेखनी द्वारा एक महान् दायित्व उठाया और उसे पूर्ण किया है । पदयात्री विचरण शीला होने पर भी इस गुरुतर भार को उठाने का जो साहस उन्होंने किया है वह सर्वथा प्रशंसनीय है । जिनकी लेखनी में आकर्षण है, जो अपने दायित्व के निर्वाह में सफल हैं, "आगमों का कार्य पूर्ण करूंगी", ऐसे आत्म-विश्वास के साथ यह कार्य उन्होंने प्रारम्भ किया था। उनकी सफलता के अधिकारी सम्पादक मण्डल के सदस्य पुरुषोत्तम जैन एवं रवीन्द्र जैन जो स्वाध्याय में सर्वदा संलग्न रहते हैं और आराधना में आसीन रहते हैं, उनका प्रयास भी सराहनीय है । इनके साथ-साथ क्लिष्ट अर्थों के सरलतम भाव, भाषा की प्रांजलता, अन्य आगमों एवं ग्रन्थों के साथ तुलना, टीका, भाष्य, चूर्ण इत्यादि का गहनतम अध्ययन करके इस आगम का सरल भाषा में अनुवाद करने का श्रेय भी इन दोनों धर्म-बन्धुओं को प्राप्त होता है । साध्वी स्मृति जी ने भी इस आगम के सम्पादन में समय-समय पर सहयोग दिया है, अत: साध्वी जी का कार्य भी प्रशंसनीय है । सम्पादक मण्डल को महान परामर्श, विवेचन तथा सम्पादन आदि सम्बन्धी कार्यों की पूर्ति में अत्यधिक समय देकर इस आगम की अनेक समस्याओं को सुलझाने का कार्य श्री तिलकधर शास्त्री ( सम्पादक आत्म- रश्मि) ने किया है। अत: उनका श्रम भी सर्वथा अभिनन्दनीय है । इस प्रकार सम्पादक मण्डल ने आगमों का कार्य करने में उसके गुम्फन और विकास में जो भी श्रम उठाया है, एतदर्थ में मंगल कामना करती हूं कि ऐसा ही कार्य करने का दिव्य अवसर इन सबको विशेष रूप से प्राप्त होता रहे और इस संयोजिका समिति का विकास होता रहे, यही है मेरी शुभ-कामना । [ बाईस 1 - साध्वी मुक्ति प्रभा (एम. ए. पी. एच. डी . )
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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