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वह बुद्धि से परे होता है, अत: प्यार देने पर भी पीड़ा मिलती है, वहां कर्म सिद्धान्त स्पष्ट हो जाता है । कर्मोदय की वेला में पुण्य का फल पाप का परिणाम बन जाता है। प्रकाश अंधकार में, "सत असत में और जीवन मृत्यु में घसीटा जाता है ।
इस प्रकार निरयावलिका सूत्र राग और द्वेष के मायाजाल से उत्पन्न सुख और दुख के भ्रम जाल का स्पष्ट चित्रण प्रस्तुत करता है। सुख और दुःख द्वंद और दुविधा किसी के द्वारा थोपे नहीं जाते, किन्तु मानवीय हाथों से अपने ही लिए ये अपनी परिणति के विविध रूपांतरण है। देवी-देवता आदि के पूर्व जन्मों की व्यथाओं का जिज्ञासाओं और समाधानों के रूप में जो वर्णन इस ग्रन्थ में प्राप्त होता है वह मनोरंजन के साथ-साथ रोचकता और भावुकता के परिणामों का परिबोध कराता है । पुत्र जन्म की विरह वेदना से व्याकुल एवं व्यथित मातृ-हृदय की मानसिक परिस्थिति का चित्रण करने में जितनी सफलता इस ग्रन्थ ने पाई है उससे भी अधिक विशिष्टता परमात्मा महावीर द्वारा विश्व बात्सल्य के उपदेश और भक्तजनों के हृदय परिवर्तन के स्वरूप अभिव्यक्ति इसमें प्राप्त होता है ।
इस निरावलिका सूत्र के व्याख्याकार संस्कृत छाया, पदार्थन्वय, मूलार्थं हिन्दी टीकाकार करने वाले श्रमण-संघ के प्रथम आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज जन-जन के तारक युगद्रष्टा क्रान्तिकारी विचारक तथा लाखों श्रद्धालुओं के जीवन-सर्जक थे।
महापुरुषों का जीवन अपनी साधना के साथ-साथ समाज के उत्थान के लिए अर्पित होता है। वे अपने सुख को विसर्जित करके दूसरों की पीड़ा को स्वयं की पीड़ा समझते हैं । वे दूसरों को सहयोग देने के लिए स्वयं की कुर्बानी करते हैं। वैसे ही सन्त शिरोमणि आगम- साहित्य के सर्जक, साहित्य-कला के कुशल कलाकार राजनैतिक दार्शनिक और सामाजिक रहस्यों के उद्घाटक आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज थे। उनकी देह के लिवास में छिपा हुआ परमात्मा सबसे अनोखा, असीम और निराला था । उनके भीतर से निकलने वाली हर किरण में एक चुम्बकीय विशिष्ट आकर्षण था । जो भी साधक उनके सान्निध्य में आता था वह उन किरणों का स्पर्श करके नयी चेतना पाता था । उनकी मूक भाषा में जिनको भी जो मिलता था उसे आत्मा द्वारा आत्मा ही अनुभव करती थी । भीतर की शान्ति, भीतर को समता और भीतर का आनन्द अशान्त मानव को शान्ति देता है और जन्म-जन्मान्तरों के पाप ताप और संताप को मिटाता है ।
इस प्रकार आचार्य श्री ने आगमों के माध्यम से गूढ़ और मार्मिक रहस्य सरल और सहज भाषा में सुलझाये हैं। आचार्य श्री ने अनेक आगमों की टीकायें अर्थ, भावार्थ और अनुवाद किये हैं- वैसे ही निरावलिका उपांग भी आचार्य भगवन्त की महती कृपा से अर्थ, भावार्थ और हिन्दी टीका का स्वरूप प्रस्तुत कर रहा है ।
इस उपांग की मुख्य सम्पादिका जिन शासन प्रभाविका, जैन ज्योति, उपप्रवर्तनी साध्वी
[ इक्कीस ] ]