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________________ का दर्शन है शरीर शुद्धि का नहीं। जो साधक साधना-काल में आत्म-शुद्धि में समय व्यतीत करता है वही मोक्ष-तत्व को प्राप्त करता है। अन्यथा संयम की आराधना करने पर भी पुण्य कर्मों का उपार्जन होने से देव-जन्म तो लेना ही पड़ता है और पुण्य का उपभोग करना पड़ता है । इस विषय का बोध प्रस्तुत उपांग से प्राप्त होता है। इस प्रकार इस उपांग में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के सिद्धान्तों का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है। ५. वृष्णिदशा-सस वृष्णिदशा उपांग में वृष्णिवंशीय बारह राजकुमारों का वर्णन बारह अध्ययनों में किया गया है। इस आगम में भगवान श्री अरिष्टनेमि के काल की घटनाओं में यदुवंशी राजाओं के इतिवृत्त का अंकन है तथा निषध कमार आदि के तप-त्याग और समाधि से निर्वाण की प्राप्ति का विस्तृत विवेचन है । भारतीय दर्शनों में सुर, असुर, इन्द्र, राक्षस, देवी, देवता, नरक आदि की मान्यतायें विशेष रूप में प्रचलित हैं, अतः निरयावलिका आदि पांचों ही उपांगों में स्वर्ग और नरक, सुख और द:ख के स्पष्ट चित्र अंकित होने से जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा का इतिहास हमारे सन्मुख उभरता है । भगवान महावीर और भगवान बद्ध दोनों श्रमण-परम्पराओं से सम्बद्ध हैं, दोनों में असमानता के तत्त्व होने पर भी समानता के तत्त्व भी स्थान-स्थान पर उपस्थित होते हैं, किन्तु स्वर्ग-नरक आदि के विषयों में तो तीनों परम्पराओं को मान्यता भिन्न-भिन्न रूपों में प्रचलित हैं। इसी प्रकार सभी दर्शनों की परम्पराओं में स्वर्ग - नरकों की संख्या, स्थान, नाम और प्रवृत्तियों का भी निरूपण है, सभी दर्शनों की मान्यताओं में नरक दारुण कष्टों को भोगने का क्षेत्र है, उसी प्रकार स्वर्ग अपार वैभव, सुख-भोगों का उपभोग करने का क्षेत्र है । इस प्रकार निरयावलिका सूत्र में नारकीय वेदनात्रों और स्वर्गीय सुखों, पुण्य और पाप, उत्थान और पतन तथा सुख और दुःख का दायित्व स्वयं के कर्मों पर आधारित है ऐसा स्पष्ट किया गया है । क्योंकि अपने ही राज्य में अपने ही पुत्र द्वारा कैदी होना कर्मों का ही फल हो सकता । राजसिंहासन की लालसा ने पिता के प्यार और माता की ममता को भी निगल लिया। अपने ही पिता के उदर का मांस खाने का दोहद पैदा होने पर भी उस पिता ने क्रूर और घातकी दोहद को पूर्ण किया। जो जीव गर्भ में ही पिता का मांस खाने की इच्छा करता हो वह जन्म लेने के पश्चात् क्या नहीं कर सकता है ? कूड़े - कचरे में मां द्वारा पुत्र को फैक देने का ज्ञान होते ही जिस बाप ने तत्क्षण उसको उठा लिया। कुक्कुट द्वारा अंगुली में चोंच मारने से अंगुली पक गई थी और बच्चा चिल्ला-चिल्ला कर रो रहा था, उसकी वेदना को सहन न कर सकने के कारण महाराजा ने मवाद निकलने पर भी अपने मुंह में अंगुली चूस कर जिस बेटे को शान्त किया था वहीं बेटा कैद में पिता को कोड़ों से पीट रहा था। जो सबके जीवन में घटित होता है वह सहज ही बुद्धिगम्य हो जाता है । जो कुछेक व्यक्तियों के जीवन में घटित होता है वह अहं-बुद्धि से होता है, किन्तु जो व्यक्तिगत जीवन में घटित होता है, [ बीस
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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