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हुए आधे शरीर पड़े थे । कहीं चीत्कार थी, तो कहीं आहें थीं और कहीं आंसू थे। चारों ओर युद्ध के नगाड़े बज रहे थे। पदार्थों के ममत्व में और व्यक्ति के प्यार में न जाने कणिक युद्ध की आग में . कितने मानवो की आहुतियां दे चुका था और दे रहा था।
जिसके भीतर कोई मानवता, प्राणों की कोई ऊर्जा, प्राणियों के प्रति कोई करुणा नहीं है, प्यार की कोई वास्तविकता नहीं है, वह कम्प्यूटर मशीन हो सकता है मानव नहीं । कूणिक का अह चोट खाए क्रोधी विषेले सांप की भान्ति रह-रह कर फंकार उठता था। वह जोर-जोर से चिल्लाता था कि मुझे कौन नहीं जानता? मुझे देखकर कौन नहीं कांपता? मेरे सन्मुख आने की किसकी ताकत है ? राजा चेटक के साथ नौ मल्लवी और नौ लिच्छवी-अठारह देशों के राजा, सेना, हाथी, अश्व, रथ और पैदल होने पर भी वह युद्ध के मैदान में मेरा मुकाबला कैसे कर सकता है ?
२. कल्पावतंसिका-कल्पावतंसिका उपांग में श्रेणिक के दस पौत्रों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। उसके पूर्वजों को दुष्कृत्यों के कारण नरक की यातनायें भोगनी पड़ी थीं, वैसे ही पौत्रों को सत्कृत्यों द्वारा स्वर्ग का.सुख प्राप्त हुआ। पिता का जीवन पतन की ओर होने से नरक की यातना और पौत्रों का जीवन उत्थान की ओर होने से भौतिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है । इस उपांग की कथा द्वारा इसी का अनुभव करवाया गया है ।
___३. पुष्पिका-इस तृतीय उपांग पुष्पिका में सर्व, चन्द्र, शुक्र आदि दस अध्ययन हैं। जिनमें सूर्य, चन्द्र, शुक्र आदि के नाटक, प्रश्न-उत्तर और गौतम को जिज्ञासाओं का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है तथा उन रोचक कथाओं में कौतूहल की प्रधानता होने से सांसारिक आकर्षण का भोग-विलास, वासना का दर्शन कराने में यह तृतीय उपांग बहुत ही सफल रहा है । इसके साथ-साथ इस उपांग में भगवान पार्श्वनाथ को सोमिल द्वारा किये गये प्रश्नों के उत्तर भी अत्यधिक मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी प्राप्त होते हैं। प्रस्तुत कथानक में चालीस प्रकार के तापसों का विवरण एवं भगवान श्री पार्श्वनाथ द्वारा हठयोग-साधना का खण्डन किस प्रकार किया गया था? उसका निरूपण भी प्राप्त होता है। स्थानाङ्ग सूत्र में भी इन सूर्य, चन्द्र, शुक्र, बहुपुत्रिका आदि के उल्लेख प्राप्त होते हैं ।
आचार्य अभय देव सूरि ने स्थानांग में निरयावलिका के नाम साम्य वाले अध्यायों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया है। ____४. पुष्पचूलाः-इस पुष्पचला नामक उपांग में भी देवलोक की देवियों का वर्णन दस अध्ययनों में प्राप्त होता है। वहायुग भगवान श्री पार्श्वनाथ के समय का युग था। उस युग की साध्वियों ने ऐसा कोन सा कार्य किया, जिससे उनको देवी बनना पड़ा, इसका विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है । वहां
वे कहां जायेंगी, इसका भी उल्लेख किया गया है । इस प्रकार सोधर्म कल्प की श्रीदेवी के पूर्वभव का सांगोपांग वर्णन किया गया है। शरीर के प्रति ममत्व होने से श्रमणाचार की विराधना होती है और विराधना से बाराधना करने पर भी भवभवान्तर बढ़ जाते हैं। जैन दर्शन आत्म-शुद्धि
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