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निरयावलिका]
( २४६ )
[ वर्ग-चतुर्थ
.. 'चउहि महत्तरियाहि पद से सिद्ध होता है कि बहुपुत्रिका देवी की चार महत्तरिका देवियाँ थीं जो बहुपुत्रिका देवी को हर समय न्याय की शिक्षा देती थीं।
विउलेहि ओहिणा-इत्यादि सूत्र विपुल अवधि ज्ञान का सूचक है, इस ज्ञान के द्वारा दूर के पदार्थ देखे जा सकते हैं। धम्मकहा के लिए औपपातिक सूत्र और सुस्वर घंटा के लिए जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र का स्वाध्याय करना चाहिए ॥१।।
उत्थानिका-उसके बाद बहुपुत्रिका देवी ने क्या किया, इसी का वर्णन सूत्रकार ने किया है ।
मूल-तएणं सा वहुपुत्तिया देवी दाहिणं भुयं पसारेइ देवकुमाराणां अट्ठसयं, देवकुमारियाण य वामाओ भुयाओ अट्ठसयं, तयाणंतरं च णं बहवे दारगा दारियाओ य डिभए य डिभियाओ य विउव्वइ, नट्टविहिं जहा सरियाभो उवदंसित्ता पडिगया। भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, कूडागारसाला० । बहुपुतियाए णं भंते ! देवीए सा दिव्वा देविड्ढी पुच्छा जाव अभिसमण्णागया। एवं पृष्ठे सति भगवान् आह एवं खलु इत्यादि ॥२॥
छाया-ततः खलु सा बहुपुत्रिकादेवी दक्षिणं भुजं प्रसारयति देवकुमाराणामष्टशतम् देवकुगरिकाणां च वामतो भनतोऽष्टशतम्. तदनन्तरं च खलु बहून् दारकांश्च दारिकाश्च डिम्भकांश्च डिम्भिकाश्च विकुरुते, नाट्यविधि यथा सूर्याभः, उपदर्य प्रतिगता। भदन्त ! इति, भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावोरं वन्दते नमस्यति, कूटागार शाला० । बहुपुत्रिकया खलु भदन्त ! देव्या सा दिव्या देवद्धिः पृष्टा यावत् अभिसमन्वागता ॥ २ ॥
पदार्थान्वयः -तएणं-तत्पश्चात्, सा बहुपुत्तिया देवी-उस बहुपुत्रिका देवी ने, दाहिणं भुयं दक्षिण भुजा को, पसारेइ-लम्बा किया, देवकुमाराणं अट्ठसयं-उस के बाद एक सौ आठ देवों की विकुर्वणा को किया, देव कुमारियाण व वामाओ भुयाओ अट्ठसयं-वाई भुजा पर एक सौ आठ देब कुमारियों की विकुर्वणा की, तयाणंतरं च गं-तदन्तर, बहवे बारगा या दारियाओ-बहुत से दारक (आठ वर्ष की आय वाले) और दारिकाओं की, डिभए य-और डिम्भों (आठ वर्ष से अधिक आयु वाले) को, डिभियाओ यं-और डिभिकाओं की, बिउध्वइविकुर्वणा की, जहा सूरियाभो-सूर्याभ देव की तरह, नट्टविहि-नाट्य-विधि, उवदंसित्तादिखा कर, पडिगया-चली गई । भगवं गोयमे-भगवान गौतम ने, समणं भगवं महावीरं