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________________ वर्ग-तृतीय] (२३८) निरयावलिका मूल-तएणं से सोमिले बहूहिं चउत्थ छट्ठम जाव मासद्ध मासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोवहाणेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता, अद्ध मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, झूसित्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते विराहियसम्मत्ते कालमासे कालं किच्चा सक्कडिसए विमाणे उववायमभाए देवसयणिज्जसि जावतोगाहणाए सुक्कमहग्गहत्ताए उववन्ने । तएणं से सुक्के महग्गए अहुणोववन्ने समाणे जाव भासामणपज्जत्तीए० ॥२१॥ छाया-ततः खलु स सोमिलो बहुभिश्चतुर्थषष्ठाष्टमयावन्मासार्द्धमासक्षपर्णविचित्रस्तप उप धानेरात्मनं भावयन् बहूनि वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयति, पालयित्वा अर्धमासिक्या संलेखनया आत्मानं जोषयति, जोषयित्वा त्रिशद् भक्तानि अनशनेन छित्त्वा तस्य स्थानस्यानालोचिताऽप्रतिकान्तो विराधितसम्यक्त्व: कासमासे कालं कृत्वा शुकावतंसके विमाने उपपातसभायां देवशयनीये यावताऽवगाहनया शुक्रमहाग्रहतया उपपन्नः । ततः खलु स शुक्रो महाग्रहः अधुनोपपन्नः सन् यावद् भाषामन:पर्याप्त्या० ॥२१॥ पदार्थान्वयः-तएणं से सोमिले-तत्पश्चात् वह सोमिल, बहूहि चउत्थं-छट्ठम जाव मासद्ध मासखमणेहि-बहुत से-चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम आदि और आधे मास (१५ दिन) और मासखमण रूप, विचित्तेहिं तवोवहाणेहि-नाना प्रकार के तप उपधानों द्वारा, अप्पाणं भावमाणे-अपने आपको भावित करता हुआ (अर्थात् बेले, तेले आदि से लेकर अर्ध मास और एक मास आदि की तपस्या करता हुआ), बहूहि वासाई-बहुत वर्षों तक, समणोवासग-परियागं पाउणइ-श्रमणोपासक पर्याय का पालन करता रहा (अर्थात् श्रमणोपासकचर्या का पालन करता रहा), पाउणित्ता-और पालन करके, अद्ध-मासियाए संलेहणाए-१५ दिन की संलेखना द्वारा, अत्ताणं झूसेइ-अपने आपको लगाए रखता है, झूसित्ता-इस प्रकार अपने आपको (तप में) लगा कर, तीसंभत्ताइं अणसणाएतीस भक्त (आहार) का त्याग करता है, छेदित्तए-और त्याग करके, तस्स ठाणस्स-अपने पूर्व कृत पाप स्थानों की, अणालोइयपडिक्कते-आलोचना एवं प्रतिक्रमण किए बिना, विराहिय सम्मत्ते-सम्यक्त्व की विराधना के कारण, कालमासे कालं किच्चा-कालमास में काल करके (अर्थात् मृत्यु समय आने पर), सुक्क-वडिसए विमाणे-शुक्रावतंसक नाम के विमान में, उववाय सभाए-उपपात सभा में (देवों के उत्पत्ति स्थान में), देवसयणिज्जंसि-देव-शमनीय शय्या में, जावते गाहणाए-प्रमणोपेत अवगाहना से, सुक्क-महग्गहत्ताए-शुक्रमहाग्रह के रूप में, उववन्ने
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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