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वर्ग - तृतीय ]
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इस प्रकार हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी यह प्रवज्या दुष्प्रव्रज्या है ।। १८ ।
टीका - प्रस्तुत पाठ में जाव० शब्द का बहुत अधिक प्रयोग करके शास्त्रकार ने पुनरावृत्ति दोष न होने देने का प्रयास किया है। हमने मूलाथ में "जाव" से गृहीत बातों को ग्रहण करके पूर्वापर को मिलाने का कुछ प्रयास किया है ।
as बस का अर्थ पूजास्थान की सीमायें बांधकर उस पूजा-स्थान को निश्चित्त करना निश्चित होने के बाद ही उपलेपन संमार्जन होता है ।
सोमिल चार दिनों तक देव के वचनों की उपेक्षा करता रहा, किन्तु देव ने अपने प्रयास में ढील नहीं आने दी, अत: पांचवीं बार वह सोमिल को समझाने के प्रयास में सफल हो ही गया । १८ ।
[ निरयावलिका
मूल - तणं से सोमिले तं देवं एवं वयासी- कहण्णं देवानुप्पिया ! मम सुपव्वइयं ? तएण से देवे सोमिलं एवं वयासी, जइणं तुम देवाणुपिया ! इयाणि पुव्व पडिवण्णाई पंच अणुव्वयाई सत्तसिक्खावयाई सममेव उवसंपज्जित्ताणं विहरसि, तेणं तृज्झ इदाणि सुपव्वइयं भविज्जा तइणं से देवे सोमिलं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता जामेव दिसि पाउब्भू जाव पडिगए ॥ १६ ॥
छाया - ततः खलु स सोमिसस्तं देवमेवमवादीत्-कथं खलु देवानुप्रिय ! मम सुप्रव्रजितं ? । ततः खलु स देवः सोमिलमेवमवादीत् - यदि खलु त्वं देवानुप्रिय । इदानीं पूर्वप्रतिपन्नानि सप्तशिक्षाव्रतानि स्वयमेव उपसंपद्य खलु विहरसि तर्हि खलु तवेदानीं सुप्रव्रजितं भवेत् । ततः खलु स देवः सोमिलं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्विता यस्या दिशः प्रादुर्भूतः यावत् प्रतिगतः ॥ १६ ॥
पदार्थान्वयः - तणं से सोमिले - तदनन्तर वह सोमिल ब्राह्मण, तं देवं एवं वयासी उस देव से इस प्रकार बोला, कण्णं देवाणुध्विया मम सुष्प वइयं - हे देवानुप्रिय ! अब आप ही बतलायें कि मेरी प्रव्रज्या सुप्रवज्या कैसे हो सकती है ? तरणं से देवे- तब वह देवता, सोमिलं एवं वयासीसोमिल से इस प्रकार बोला, जड़ णं तुमं देवाणुपिया - हे देवानुप्रिय ! यदि तुम, इयाणि पुरुवपडवण्णाई - अ -अब भी ( भगवान पार्श्वनाथ से ) ग्रहण किए हुए, पंच अणुव्वयाइं - पाँच अणुव्रतों, सत सिखावयाइं - (और) सात शिक्षा व्रतों को, सयमेव उवसंपज्जित्ताणं- स्वयं ही (पुनः) ग्रहण करके, विहरसि - जीवन यात्रा पर चलोगे, तएणं तुज्झ इदाणि- तब तेरी प्रवज्या अब भी, सुप्पन्वइयं - सुप्रवज्या, भविज्जा हो सकती है, तइणं से देवे - तव वह देवता, सोमिलं बंबद्द नमंसइ - (सोमिल द्वारा उसके कथन के अनुरूप बारह व्रतों का पालन करते हुए विचरने लगा, यह