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________________ वर्ग-तृतीय] ( २३०) [निरयावलिका वत् "तेरी यह प्रवज्या दुष्प्रवज्या है" कह कर जहां से आया था कहीं लौट जाता है । तदनन्तर वह सोमिल प्रात:काल सूर्योदय होने पर बल्कल वस्त्र धारण करता है अपनी कांवड़ उठाता है और काष्ठमुद्रा से अपना मुंह बांधकर उत्तराभिमुख होकर उत्तर दिशा में ही चल देता है ।।१४।। टोका-सोमिल उत्तर दिशा में आगे ही आगे बढ़ रहा था। दूसरे दिन उस यात्रा में वह सप्तपर्ण वृक्ष के नीचे ठहरा था, तीसरे दिन के विश्राम में वह अशोक वृक्ष के नीचे ठहरा है। काष्ठ-मुद्रा से मुंह बांधकर चलने की बात का स्पष्टीकरण पहले किया जा चुका है। अब पुन: वह उत्तर दिशा में ही चला । देव ने इस बार भी उसको प्रबज्या को दुष्प्रवज्या बतलाया. किन्तु देव-वचनों की उपेक्षा करके वह अपने अपनाये हुए मार्ग पर ही चलता रहा ।।१४।। मूल-तएणं से सोमिले चउत्थे दिवसे पच्छावरण्हकालसमयंसि जेणेव बडपायवे तेणेव उवागए, बडपायवस्स अहे किढिणसंकाइयं ठवेइ, ठवित्ता वेई वड्ढेइ, उवलेवण संमज्जणं करेइ जाव कट्ठमुद्दाए महं बंधइ, तसिणीए संचिट्ठइ । तइणं तस्स सोमिलस्स पुन्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउन्भूए तं चैव भणइ जाव पडिगए । तएणं से सोमिले जाव जलंते वागलवत्थनियत्थे किढिणसंकाइयं जाव कट्ठमुद्दाए मुहं दंधइ, बंधित्ता उत्तराए दिसाए उत्तराभिमुहे संपत्थिए ॥१५॥ छाया-ततः खलु स सोमिलः चतुर्थे विवसे पश्चादपराकालसमये यत्रैव बट पादस्तत्रैवोपागतः बटपादपस्याधः किढिणसाङ्घायिकं स्थापयति,स्थापयित्वा वेदि वर्धयति, उपलेपनसंमार्जनं करोति, काष्ठमुद्रया मखं बध्नाति तूष्णीकः संतिष्ठते । ततः खलु तस्य सोमिलस्य पूर्वरावापररात्रकाले एको देवोऽन्तिक प्रादुर्भूतः । तदेव भणति यावत् प्रतिगतः। ततः खल स सोमिलो यावज्ज्वलति वल्कलवस्त्रनिवसत: किढिणसाङ्कायिकं यावत् काष्ठमुद्रया मुखं बध्नाति बद्ध्वा उत्तरस्यां दिशि उत्तराभिमुखः संस्थितः ॥१५॥ पदार्थान्वयः-तएणं से सोमिले- तत्पश्चात् वह सोमिल, चउत्थे दिवसे–चौथे दिन, पच्छावरण्ड-काल-समयंसि-दिन के अन्तिम प्रहर में (सायं काल के समय, जेणेव बड़पायवेजहां पर एक बड़गद का वृक्ष था, तेणेव उवागए-वहीं पर आ पहुंचा, बडपायवस्स आहे-उस
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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