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________________ निरयावलिका ] ( २१६ ) जाव० - यावत्, अणजाणउ — उनको ग्रहण करने की आज्ञा प्रदान करें; प्रार्थना करके, दाहिणं दिसी पसर - वह दक्षिण दिशा की ओर चला गया । (वर्ग-तृतीय त्ति कट्टु - ऐसी एवं पच्चत्थमेणं - इस प्रकार पश्चिम दिशा में, वहणे महाराया - महाराज वरुण की आज्ञा आदि लेकर जाव० - यावत् पच्चत्थिमं दिसि पसरइ-पश्चिम दिशा में चला गया । वेसमणे महाराया - महाराज वैश्रमण की आज्ञा आदि ग्रहण कर, जाव० - यावत् उत्तरं दिसि पसरइ -उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा । उत्तरेणं- - उत्तर दिशा में पुव्वदिसा गमेणं - पूर्व दिशा में गमन की तरह, चत्तारि विदिसाओ- चारों विदिशाओं के सम्बन्ध में भी, भाणियव्वाओ - कहना चाहिये, जाव० - याबत्, आहारं आहारेइ - जब तक कि प्रहार ग्रहण करता है ।। १० ।। मूलार्थ - तत्पश्चात् उस सोमिल ब्रह्मर्षि ने दूसरे षष्ठखमण व्रत के पारणे के लिये जो कुछ किया वह पहले किए हुए वर्णन जैसा जानना चाहिये। यहां इतना ही विशेष ज्ञातव्य है कि इस बार सोमिल ब्राह्मण दक्षिण दिशा की ओर मुख करके महाराज यम से प्रार्थना करता है कि मार्ग में चलते हुए सोमिल ब्राह्मण की रक्षा करें। ऐसी प्रार्थना करके वह दक्षिण दिशा की ओर चल देता है । इसी प्रकार वह पश्चिम दिशा में महाराज वरुण की प्रार्थना करके चला गया । उत्तर दिशा में वह महाराज वैश्रमण की प्रार्थना करके चला गया । पूर्व दिशा की भांति चारों दिशाओं के स्वामियों की आज्ञा लेकर उसने स्वयं भोजन किया ॥ १० ॥ टीका - प्रस्तुत सूत्र में लोमिल नामक ब्रह्मर्षि द्वारा विभिन्न दिशाओंों के लोकपालों से ग्रहण की गई प्रार्थना एवं आज्ञा का वर्णन है। वह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में जाकर अपनी तपस्या को पूर्ण कर पारणा करता है । दक्षिण दिशा के दिग्पाल यम, पश्चिम दिशा के वरुण और उत्तर दिशा के दिग्पाल वैश्रमण माने गए हैं। वह उन दिशाओं के दिग्पालों से कन्द-मूल आदि ग्रहण करने की आज्ञा लेता है। सभी कृत्य वह प्रत्येक दिशा में एक समान करता है, अन्तर दिशाओं और लोकपालों का है, उसके धर्मकृत्यों में कोई अन्तर नहीं पड़ा ॥ १०॥
SR No.002208
Book TitleNirayavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Swarnakantaji Maharaj
Publisher25th Mahavir Nirvan Shatabdi Sanyojika Samiti Punjab
Publication Year
Total Pages472
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size10 MB
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